29 July
2014
08:31
-इंदु बाला
सिंह
मैं अपाहिज
झांकू झरोखे से
फूलदान के
पत्ते सी ....
मुंह मेरा
सदा बाहर रहे
दिन भर सूरज
देखता रहे
आजादी की चाह
में
जीती रहूं
सपने देखूं
उस पल का
जब धरा पर मैं
फ़ैल जाउंगी
अपनी उपस्थिति
धरा पे दर्ज
करुंगी
मैं नीव ही
नहीं
विशाल मकान भी
हूं |
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