सोमवार, 28 जुलाई 2014

आशीर्वाद


28 July 2014
07:29
-इंदु बाला सिंह

उम्रदार पड़ोसन
प्रशंसा कर रही थी
अपने नये युवा किरायेदार अफसर का
अपनी कामवाली से .......
इतना भला न देखा मैनें
हर तीज त्यौहार में
आकर मेरा चरण स्पर्श कर
मुझसे
आशीर्वाद लेता है
मेरी बिटिया तो मेरा पैर ही न छूती ...
मैनें सोंचा ....
कर्म से बड़ा आशीर्वाद न
बिना कर्म के आशीर्वाद फलीभूत होता
तो
हर कोई
मुहल्ले के हर बुजुर्ग का चरणस्पर्श करता
और
सभी गरीब अमीर हो जाते ........
बलात्कार भी बंद हो जाते |

कल किसने देखा !


28 July 2014
09:32
-इंदु बाला सिंह

माँ कहे
सपने में भी बड़बड़ाये .......
भगाओ इसे 
मेरे बेटे का हक ये छीने |
पिता कहे ......
मैंने तो कुछ न कहा |
जीवन साथी कहे .......
मैं न खिला सकून इसे |
ब्याहता भाई कहे .......
फूटपाथ पर रहे ये
मुझे इससे क्या मतलब |
इश्वर कहे ........
मैं तो पत्थर हूं |
मैं
हो मौन
लड़ती निज से
निज मन के खर पतवार उखाड़ती
फेंकती
सोंचती
जी लूं आज
कल किसने देखा |

सुनामी शिक्षक


28 July 2014
15:36
-इंदु बाला सिंह

परीक्षा के बाद खाली समय में
जब जब  गपे हम
खुल जाये 
कितने ही विद्यालयों के
सुनामी शिक्षक शिक्षिकाओं का कच्चा चिट्ठा
बड़ा मजा आये
मुफ्त का हो ज्ञानवर्धन
वाह जी वाह
छात्रों को सदाचार सिखानेवाले
की कीमत
कोई न जाने
इसीलिये तो
वे
बेचारे कभी न टिक पायें
एक विद्यालय में |

बिटिया और चाभी


28 July 2014
23:14
-इंदु बाला सिंह

चाभी की खोजाई हुयी
हार कर
सोंचा मैंने
कहीं बिटिया ने
खेल खेल में इधर उधर न रख दी हो
और
अपनी डेढ़ वर्षीय बिटिया से पूछा मैंने  .......
चाभी कहां है ?
बिटिया ने पेट दिखाते हुये कहा ....
पेट में |
भला पेट में चाभी कैसे पहुंचेगी
यह सोंचते हुये
फिर खोजाई शुरू हुई
पर चाभी न मिली
हार कर
जब मैंने उसका पेट टटोला
चाभी मिली
बिटिया के टी शर्ट के अंदर
पेट पर
नीचे के पैंट के कारण
चाभी फंसी पड़ी थी
बिटिया ने चाभी सुरक्षित जगह रखा था |

मित्र


28 July 2014
23:36
-इंदु बाला सिंह

मित्र
समानांतर रेखा सा होता है 
जो
एक दुसरे का ख्याल रखते हुये
बस बढ़ता ही जाता है |

उपस्थिति दर्ज करना है


29 July 2014
08:31
-इंदु बाला सिंह

मैं अपाहिज
झांकू झरोखे से
फूलदान के
पत्ते सी  ....
मुंह मेरा
सदा बाहर रहे
दिन भर सूरज देखता रहे
आजादी की चाह में
जीती रहूं
सपने देखूं
उस पल का
जब धरा पर मैं फ़ैल जाउंगी
अपनी उपस्थिति
धरा पे दर्ज करुंगी
मैं नीव ही नहीं
विशाल मकान भी हूं |

शनिवार, 26 जुलाई 2014

बंधन


01 July 2014
07:35

-इंदु बाला सिंह

मातृत्व का बंधन
तोड़े न टूटे
चाहे जग छूटे |

चौकीदार हूं


25 July 2014
11:11
-इंदु बाला सिंह

असहाय हूँ
अकेली हूं
पितृहीन हूं
गृहहीन हूं
अपने ही मकान  की
मुफ्त की चौकीदार हूं
क्यों कि
लडकियों को
कोई मकान नहीं देता
रिश्तेदार
किरायेदार
कितनी बोलें बोलने के हकदार हैं
क्योंकि
मैं
लड़की हूं
कमाती नहीं हूं
मुझे नौकरी नहीं मिलती 
मेरे पिता ने मुझे जन्माया
कन्यादान कर के
पूण्य कमाने के लिए
और
पूण्य कमाकर 
मुझे
सबकी दया की पात्री बनाकर
चौकीदार बनाकर
स्वर्ग में अपने आरक्षित स्थान में बस गये .....
.............................
इस
अभूतपूर्व जग का अनुभव कराने का
पितृ श्री
मैं हूं
आपकी आभारी |

सह्संयोजन है जीवन


20 July 2014
06:39
-इंदु बाला सिंह

वे
न थे हमारे
तभी तो
वे न लौटे .......
हम तो
बस
उनका इंतजार करते रहे
ख्वाबों में
घरौंदे बसाते रहे
गाते रहे ........
काश वे कह कर जाते ........
भूल चले थे हम
जिन्दगी के
सह्संयोजन के
फलसफे
आकाश में उड़ने वाले
बावले होते हैं |

यूं ही राह दिखाना


26 July 2014
07:18
-इंदु बाला सिंह

आकाश दीप
तुम यूं ही जलते रहना
जब जब
सागर में दिग्भ्रमित हो कोई
उसे राह दिखाते रहना |

फौलाद


26 July 2014
06:58
-इंदु बाला सिंह

निष्पक्ष रह के
हारी मैं
पर
अकेली बन के
विचारक
व 
फौलाद बनी
अब
लोगों को इन्तजार है
मौसम का
मेरे मिट्टी में समाने का .........
पर
लोग ये भूल जाते हैं
कि
आवाजें
हवा में
गूंजती रहती हैं .......
और
वे
हर बहरे के
कान में फुसफुसाती रहती हैं |

सिपाही सरीखे हम


26 July 2014
07:57
-इंदु बाला सिंह

आनेवाले
कल के आस में
जिए तो क्या जिये
जब
पल पल हारे हम
पर
हार के बीज से
उपजी जीत की लहराती पताका
के उन्माद में
सांसे हैं बांधे
वीर सिपाही हम |

बेटी और बहू


26 July 2014
09:03
-इंदु बाला सिंह

बेटी व बहू
कभी न एक समान
बेटी को डाटू
तो
वो घर से चली जाय
पर
बहू को डाटू
तो
वो बेटे को घर से ले के
चली जाय |

अद्भुत दुनिया


27 July 2014
04:59
-इंदु बाला सिंह

रंग बदलती महिलाएं देखा
ठगनेवाले पुरुष देखे
दिन को रात कहनेवाले देखे
निरीह बालक देखे
अबोध छोटे बच्चे देखे
समझदार लोग देखे
आक्रोश देखा
ये कैसी दुनिया रच डाली तूने
और
अब
तू नभ में समाधि लगाये  बैठा
उठ
जरा तू तांडव कर ले
एक बार
तू जरा
धरा पे जन्म ले
देख जरा
धन से
बौराये जन को
कट मरते तन को |

पड़ोसी याद आते हैं


27 July 2014
07:58
-इंदु बाला सिंह

कुछ पड़ोसी
ऐसे होते हैं
जिनके जाने पे
हम खुश होते हैं
पर
कुछ पड़ोसी
ऐसे होते हैं
जिनके जाने पर
उनसे भले लोग के आने की आशा
हम करते हैं ..........
दोनों ही पड़ोसी
हमें बहुत याद आते हैं
क्योंकि
एक ने हमारा जीवन नरक बनाया था
और
दूजे ने हमारे घर को सुरक्षित रखा था |

मर्द की कीमत


27 July 2014
08:06
-इंदु बाला सिंह 

मर्द की कीमत
दिखने लगी घर में
जब
पति के गुजर जाने के बाद
घर
कामवालियों का
ड्राइंग रूम बन गया
बगान में
बड़ी बड़ी घास उगने लगी
मकान के अगल बगल
कचरे का ढेर
धीरे धीरे
उगती घास के साथ साथ ही
उंचा होने लगा
हित मित्रों का आना घर में बंद हो गया
अपनों के शादी ब्याह में
मौत में
कार्ड मिलना बंद हो गया
फोन पे
खबरों ली दी जाने लगी
अपनों द्वारा
क्यों कि
वे मकान पे
किसी के
कब्जा होने के
भय से भयभीत थे |

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

तू कब सूर्य बनेगी !


08 June 2014
20:31
-इंदु बाला सिंह

कौन कहता है
किस्मत नहीं होती !
किस्मत
धरा में समायी
पांच की पत्नी बनी
कल्पना चावला बनी
इंदिरा गांधी बनी
गुमशुदा रही
अनगिनत भ्रूण में रहीं
चमकीं
और
धूमकेतु सी विलीन हुयीं
ओ री किस्मत !
कब तू चमकेगी ?
सूर्य बनेगी |

यूज एंड थ्रो


24 July 2014
09:23
-इंदु बाला सिंह

सुना था
रेट बढ़ गया हैं रिश्तों का
सोंचा
बेच ही डालूं
पड़ोसी के रिश्तों को
पर
पाया मैंने
अब तो
यूज एंड थ्रो का जमाना है आया |

मृग मरीचिका


24 July 2014
08:58
-इंदु बाला सिंह

हम बारम्बार लौटते हैं
तलाशते हैं
खोये निशानों को .....................
यह कैसी मृग मरीचिका है
रेत के समन्दर में
भटकते रहते हैं
अपनों की आवाजें हवा संग आती है
सुना जाती है हमें अपनी उपस्थिति
और
चकित हो
खुश हो
हम
कुलांचे भर
दौड़ लगा लेते हैं |

मेरी बी० पी० हाई


24 July 2014
07:49
-इंदु बाला सिंह

घर में चार सहायक
एक की बेटी मरी
दूजे की माँ
तीसरे का बच्चा बीमार
चौथे ने
पूंछ हिला कर घर साफ़ किया ........
काश
मुझे भी मिलती छुट्टी आफिस से ...............
एक बार
सास के मरने पे मांगी थी छुट्टी
मेरी सहकर्मी ने
उसे तो पूरी छुट्टी दे दी बॉस ने
ये लो
जाते समय चौथी ने कह दिया ....
कल आना उसका मुश्किल है
क्योंकि
उसकी सास की बी० पी० हाई है ......
सुनते ही
मेरी बी० पी० हाई हो गयी |

पूरी रोटी चाहिये


24 July 2014
07:03
-इंदु बाला सिंह

अनागत को ढूंढते जाते हैं हम
खुशी की तलाश में
चलते जाते हैं हम
मुट्ठी का पल खोते जाते हैं हम
ये
न जाने कैसी प्यास है उपलब्द्धियों की
कि
इस घुड़दौड़ में
हमारे हाथ की उपलब्द्धि छूट जाती है हमसे
और
हम पूरी रोटी पाने के लिए

भौंकते रह जाते हैं |

सूरज बन देखूंगा तुझे


23 July 2014
07:13
-इंदु बाला सिंह

तेरे सपनों को उड़ा दिया मैंने
ठोंक पीट कर तपा दिया मैंने
योद्धा बना दिया तुझे
ओ री बिटिया मेरी
पर तेरे लिये
खरीद दिया है
सुखी संसार
खुश रहना का आशीष दे
मैंने
आज
पलकें बंद कर ली है
अब
मैं
सूरज बन देखूंगा तुझे प्रतिदिन |

अकेला रहे पिता


23 July 2014
07:05
-इंदु बाला सिंह

मर्द के
कंधे से कंधे से कंधे भिड़ा युद्ध करते
तलवार भांजते
औरत
कब पिता बन गयी
उसे
पता ही न चला
और
वह अकेली बन गयी |

नींद नहीं तो सपने कैसे


23 July 2014
00:06
-इंदु बाला सिंह

घबरा उठता है जब मन
तो हम
तौलने लगते हैं
मन की पांखें
और
उड़ने को उत्सुक हो उठते हैं
बीते कल में
ढूंढने लगते हैं
अपनों की महक
पर
वे अपने भावहीन से
गुजर जाते हैं
हमारी आँखों के सामने से
हम
बस देखते रह जाते हैं
और
वर्तमान संग समझौते करते जाते हैं ...
नींद आये
तब न सपने देखें हम ...
सुना है
खुली आँखों के सपने सच नहीं होते |

नया स्कूल खुला है यारो


21 July 2014
07:06
-इंदु बाला सिंह

साहित्य और गणित
बने शिक्षक ..............
अरे !
देखो
संयम बने हैं अध्यापक
क्या स्कूल खुला है यारो
मन जीतो
तन जीतो
जीत लो
अब जग प्यारो |

सर्वोपरि मनुष्य


20 July 2014
12:15
-इंदु बाला सिंह

कर्म ही पूजा है
कर्म ही धर्म है
कर्म ही ज्ञान है
जिसने कर्म का महत्व समझ लिया
वह मनुष्य सर्वोपरि है
अनुकरणीय है |

मूक साथी


20 July 2014
05:51
-इंदु बाला सिंह

ओह पेड़ 
लीची और आम के पेड़
तुम हो प्यारे
मेरे साथी और सहारे
तेरी डालियों से मैं रस्सी बांधूं
उसपे कपड़े सुखाऊं
झूला डालूं
तू मुझे हरसाये
जीने को आक्सीजन दे
तू मेरे हर सुख दुःख का मूक गवाह
कितनी बातें करता तू
मेरे मौन मकान से
शायद
मूक की भाषा
मूक ही समझे |

मुंहफट छात्र


19 July 2014
22:00
-इंदु बाला सिंह

सीधी साधी
बिना सजे धजे
स्कूल आनेवाली पित्रहीन टीचर
छात्र और अभिभावक
दोनों के मन को भाती थी
फिजिक्स विषय में
छात्रों का मन मुग्ध करनेवाली
टीचर के बाल में उगने वाली सफेदी देख
छात्र चितित हो चले ...
एक दिन एक्स्ट्रा क्लास में पूछ बैठे ..........
टीचर आप शादी नहीं करेंगी
आप बुड्ढी हो रही हैं ........
मेरे लिए किसीने लड़का ही नहीं ढूंढा ......
हम लोग ढूंढेगे टीचर ........
मैं जानता हूं एक भैय्या को ........
वो इंजीनियर हैं ...........
पर उनकी दूकान है ...........
आपको तो पैसे से मतलब है न ..............
और टीचर विस्मित थी
अपनी बारहवीं कक्षा के छात्रों की समझदारी पे |


शनिवार, 19 जुलाई 2014

माँ तो पेड़ है


18 July 2014
07:12
-इंदु बाला सिंह

ओहो माँ !
कितनी प्यारी है तू
तेरी गोदी कितना भाये
ऐसे ही रहना
तू सदा
पेड़ सरीखी
तेरे छांव तले बैठूंगा
मैं
दुनियां से नहीं डरूंगा
तेरी डाली पर बैठ
कृष्ण कन्हैया बनूंगा
बांसुरी बजाऊंगा
पेड़ से फल खाऊंगा
शाश्वत रहना तू ......
धकेल दिया माँ ने
गोदी से
घोड़ा हो गया है
गोदी में बैठता है
आफिस नहीं जाना है क्या !
तेरा ब्याह करना है
अब मुझे
वही कान उमेठेगी तेरा
अब तेरी ऊँचाई
मुझसे ज्यादा है
कह कर
माँ मुस्काई ........
लूं बलैयां
मैं तेरी
ओ मेरे कृष्ण कन्हाई |




मौज ही मौज


18 July 2014
20:29
--इंदु बाला सिंह
दूर होईये 
मुझसे 
बस एक झूठ बोल कर 
कितना आसान हो गया है 
 
ये लो 
अब 
कटना 
मेरी जिन्दगी से .........
जब तक चाहे 

मौज करो यार ………

किस किस को याद रखें


18 July 2014
22:23
-इंदु बाला सिंह

कैसी बहन
और
अब कैसी भाभी
हम भूल चले उनकी पकायी
रोटियां
पुरियां
होली की गुजिया भरे डब्बे
और
दिवाली के लड्डू ..........
मिली
हमें तो अब
अपनी घरवाली .......
किस किस को याद रखें हम
अब तो
तनख्वाह न पूरी पड़े हमारी |

गुरुवार, 17 जुलाई 2014

पांच सौ का नोट


16 July 2014
22:54
-इंदु बाला सिंह

ड्राइंग रूम में
पांच सौ का नोट पड़ा देख के
बहुरानी की आंखें चमकी ........
जरूर यह नोट सासु माँ का है
यहीं वे बैठी थीं
घर में इतने नौकर चाकर हैं
गर वह
नोट रख ले
तो
पकड़ में तो
वह आयेगी ही नहीं
इतना कान भरती है
सासू माँ अपने बेटे का
उसके खिलाफ
मानो मेरे पति पर मेरा हक ही नहीं ........
पल में
बहुरानी के
विचार पलटे ......
ना बाबा ना
चोरी का बीज जेहन में बोना
बुरी बात .........
और
बहुरानी ने पांच सौ का नोट
पकड़ा दिया सासु माँ को .............
अम्मा आपका नोट ड्राइंग रूम में पड़ा था .........
सासू माँ नोट हाथ में ले कर
करवट बदल ली |

बुधवार, 16 जुलाई 2014

तैरेंगे


16 July 2014
16:02
-इंदु बाला सिंह

हम
तैर रहे थे
तैरते रहेंगे
हर मौसम में साथ साथ ........
हम
कभी
हिम्मत न हारेंगे
और
न छोड़ेंगे
हम तीनों
एक दूजे का हाथ
जरूर बांधेंगे जीत का सेहरा .......
ऐसा है
मन में पूर्ण विश्वास |

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

कंधे पे अतीत


16 July 2014
07:10
-इंदु बाला सिंह

कभी कभी
अतीत का शव कंधे पे लाद
चलना भाने लगता  है
पर
चाल धीमी हो जाती है
और
मोहग्रस्त हो
हम
बस
यूं ही चलते जाते हैं
क्षितिज के  इन्द्रधनुष को
छू लेना चाहते हैं
बच्चों सा किलक जाना चाहते हैं ........
हमारा हौसला देख
शिव भी
मुस्काता होगा
उसे
अपनी सती याद आती होगी |

बिचौलिये


16 July 2014
08:49
-इंदु बाला सिंह

सरकारी फाईल
दबी न रहती
तो
हम बिचौलियों की कैसे चलती ......
हम
आपका काम करवाते हैं
आपका समय बचाते हैं
किसी का कुछ चोरी नहीं करते
बस
मजबूरी में
यह धंधा करते हैं
अपने परिवार का
पेट भरते हैं |


साथियों का शोक


15 July 2014
22:18
-इंदु बाला सिंह

संगियों  के
एक एक कर के मौत की खबर
और
उसके घर जा कर
शोक प्रकट करने के बाद
घर लौटने पर 
अपने साथियों के बिछड़ने का शोक तोड़ देता था
पिता को  ........
मृत साथियों का मृत्युभोज तो खा आते थे
पिता
पर 
मिलने पर
मुझसे
कह उठते थे .............
बहुत जी लिया मैं
मेरे गाँव व शहर के संगी साथी
साथी चले गये
ज्यादा नहीं जीना चाहिए अब मुझे .......
और
एक दिन सच में
पिता  चले गये ..........
पिता की तेरही में
उनके चित्र के सामने रोता रूप
पिता के वृद्ध मित्र का 
कभी न हटा
मेरे स्मरण से |

सोमवार, 14 जुलाई 2014

ग्रीवा में हाला


14 July 2014
07:29
-इंदु बाला सिंह

धारण कर
ग्रीवा में
हाला
जिन्दगी तो शिव सी भयी .......
हर साल
सावन में जग जाती  तू
तीज में
झूले झूलती
ओ री जिन्दगी
बाकी माह
तू कहां सो जाती
छुप जाती
खो जाती
हवा में
तेरी उपस्थिति
मैं सूंघती फिरती |

बिटिया हूं


14 July 2014
12:39
-इंदु बाला सिंह

सामान नहीं हूं मैं
कि
तुमने अपने घर से उठा लिया
और
दान कर दिया
गंगा
नहा लिया .......
मैं
तुम्हारा ही अंश हूं
एक जीवित प्राणी हूं 
तेरे पुत्र सरीखी
मान सम्मान चाहनेवाली
तेरे ही घर की
सदस्या हूं .........
चाहे कहीं रहूं मैं
तुम्हारी
शुभाकांक्षी
सहारा बिटिया हूं 

रविवार, 13 जुलाई 2014

मटकऊअल


14 July 2014
06:47
-इंदु बाला सिंह

मुट्ठी का
अपना है
दूर का
एक सपना है
आँख खुली
तो
क्यूँ डहुरा तू
सपने तो सपने होते हैं
बूंद सरीखे
रेगिस्तान में खो जाते हैं ......
और
रुई न धुई
भला क्यों
जुलाहन से
तू
मटकऊअल 
करता रहता है |

मधुरता बिला गयी


11 July 2014
07:02
-इंदु बाला सिंह

मधुरता बिला गयी
सांप के कोटर में
लाना होगा
किसी रानी का
हीरों का हार
छुपाने को कोटर में |

ओफ्फोह कबरी


11 July 2014
07:50
-इंदु बाला सिंह

आज
सुबह सुबह मौजूद थे
बिल्ली और बिलौटा आंगन में
और
सील को बना कर प्लेट
रक्खा था
मरे चूहे को ......
मैं चीखी ..........
ओहो !
कबरी !
अभी बताती हूं .......
डंडा ले दौड़ायी
गोल दौड़ कर मुझे देखने लगी ........
म्याऊँ म्याऊँ .........
करने लगी
उस डंडे से चूहा धकेल जमीन पर
उल्टी सील .......
ओह !
कबरी !
अभी इतवार को तो तुमने
न जाने कहाँ से कबूतर पकड़ा था
पार्टी मनाया था
अपने बिलौटे संग
सीढ़ी घर में
छुप के .............
ओफ्फोह कबरी !
आज
तुमने
मेरी सील को बनाया अपना प्लेट |

कर्मफल


11 July 2014
23:38
-इंदु बाला सिंह

लोग कहते हैं
माँ बाप का कर्मफल
भोगती है औलाद ........
मैं कहूं
औलाद का कर्मफल
भोगते हैं माँ बाप ........
अपने कर्मफल के अनुसार
वे
अपना
बुढ़ापा बिताते हैं |

गांव जीवित है


12 July 2014
06:48
-इंदु बाला सिंह

चुनौती है
ब्याह करना एक शहरी लड़की से
फिर
उसे
गांव छोड़ कर
माँ को खुश रखना
और
अपनी पत्नी को खुश रखना .......
चुनौती उठाता है
मर्द
तभी तो
मर्द कहलाता है
मर्द
और
अपना घर बसाता है ........
मुस्काता हुआ वह
एक दिन
अपनी पत्नी लाता है शहर
आखिर 
अपनी तीन वर्षीय सन्तान को
अच्छे स्कूल में पढ़ाना है न .......
गांव को सांसें देना
आज भी
नहीं भूला है मर्द ........
शहर में रह कर भी
रिश्तों में जीते हैं
आज भी
कुछ मर्द |

बुद्धि की ऐंठ


13 July 2014
21:51
-इंदु बाला सिंह  


ख्वाहिशें
आंख बंद कर लेटी रहतीं
एक तृप्त होते ही
दूसरी भूख से बिलबिला कर जग जाती .....
ये मन भी कितना  कमीना है
कभी कौड़ी के मूल्य बिकता
तो
कभी बोली लगानेवाला हिम्मत हारता ........
बुद्धि जब जब ऐंठ कर चलती थी 
तब तब 
मन सांस की साँस रूक जाती .थी .......
और
फिर
एक दिन सुना मैंने
वे दोनों
कुत्ते की मौत मरे  |