सोमवार, 24 दिसंबर 2018

सपने बारम्बार जन्मते हैं ।

-इंदु बाला सिंह


हर साल सुनामी आती है

गुजर जाते हैं बहुत से अरमान ...

फिरअंकुरित होते हैं सपने

यूं लगता है मन धरती बन गया है ।



रविवार, 9 दिसंबर 2018

दूसरा जीवन युद्ध छिड़ा

- इंदु बाला सिंह

लो छिड़ा दूसरा जीवन युद्ध

चले हम ....

आज न संग कोई

हुये उन्मुक्त हम ....

बांध चले कमर में

आज तो कफ़न हम ...

छिड़ा युद्ध स्वाभिमान का .. मान का

लो बटोर चले हम तो यादों के लम्हे ....

जहां रात कटी वहीं बसा घर

हर भोर सामने नया मैदान था ...

हम तो  बनजारे हो चले





शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

जिंदगी

- इंदु बाला सिंह


जिंदगी ...एक बुलबुला है पानी का

सूरज की रोशनी में सतरंगी बन जाता है

सीपी में प्रवेश करते ही मोती बन जाता है ।

शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

छेड़ो न दीपक को

- इंदु बाला सिंह


जलने दो दीपक को

थोड़ा सा ही तो स्नेह है

खुद बुझ जायेगी वह आशा - लौ ...

तुम्हें उस दीपक से दिशा-ज्ञान नहीं चाहिये न सही

हो सकता है किसी भटके पथिक का वह  पथ प्रदर्शक बन जाये

छेड़ो न तुम लौ को .... दिख जायेगा तुम्हारा चेहरा हर किसी को ।


शनिवार, 17 नवंबर 2018

घर

- इंदु बाला सिंह

घर के लिये मकान जरूरी है

पर मकान के लिये  घर जरूरी नहीं .....

गजब है न ! लोग मकान में रहते हैं

पर वह घर सरीखा दिखता भर है ....

एक विचारणीय शब्द है घर

कभी समय मिले तो सोंचना तुम घर का अर्थ....

तुम घर में रहने की चेष्टा करना ।

मंगलवार, 13 नवंबर 2018

बेटियां खुद आत्मनिर्भर हो जायेंगीं

- इंदु बाला सिंह

आजीवन युद्ध चलता रहा उसका समय से

पर जीतते गये उसके अपने , रिश्तेदार ..

कौन कहता है बेटे और बेटी में फर्क नहीं है

अखबार तो बस अखबार ही है .....

घून लगा है परिवार में

लड़की की जड़ें खोखली हैं ...बाकी सब दिखावा है

जैसे देश आजाद हुआ था

एक न एक दिन खुद बखुद आजाद हो जायेंगीं

बेटियां ...


आत्मनिर्भर हो जायेंगी .... एक दिन बेटियां ।

शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

नन्ही

-इंदु बाला सिंह

बेटी उतरी धरती पर

जन्मी खुशी ....

संग लाई वह .... एक अनजाना भय

न जाने कैसा होगा भविष्य ...

पिता उसके .....सुरक्षा कवच थे ...छांव थे

समय उसे ललकारता रहा ...

भय के क्रूर धरातल पर चलते रहे

 उसके फौलादी  पांव ....

अपने ... उसके गिरने के  इंतजार में रहे  ।



गुरुवार, 1 नवंबर 2018

आह...की आग

- इंदु बाला सिंह

दिल न दुखाना किसीका

क्या पता कब लग जाय  ...आह किसी की ।

क्रोध तो  विष है  ...धारण कर ले न .... तू  आज ..... उसे  निज  कण्ठ में

क्या पता कब .. नीला कर  दे ...वह तेरा  तन ।




रविवार, 28 अक्टूबर 2018

आखिर सुराख हो ही गया ।

- इंदु बाला सिंह

आखिर एक दिन उसने ऐसा तीर मारा कि आसमान में सुराख हो गया

और दुआ बरसने लगी

उसपर.....

मुहल्लेवालों ने दांतों तले उंगली दबा ली ।

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

घुमक्कड़

-इंदु बाला सिंह

यूं लगता है ... लम्बे लम्बे डग भरती  पाजामे और जैकेट में चली जा रही है मेरी काया हल्के धुंधलके में

कोई उत्तेजना नहीं ... बस चली जा रही है मेरी काया ....

और में देख रही हूं खुद को ।

वैसे घूम फिर कर लौटेगी काया जरूर

मन का साथ छूटेगा नहीं ..

कभी कभी बस यूं ही घूम फिर आना अच्छा लगता है ....

बिना ट्रेन , ऐरोप्लेन हम कहां कहां घूम आते हैं

मानव जीवन भी अद्भुत है

पगडंडियों  से गुजरता है

अनुभवों के सागर में  गोता लगाता  है ।

साथी

- इंदु बाला सिंह

धोखेबाज से बचियो

ओ रे साथी !

लूटेगा वो दिखा के सपने ...

दोष .... तेरे सपने का नहीं

तेरा है ....

तूने अपनी अंतरात्मा पर अविश्वास किया ।

साथी की आंखे न पढ़ सका तू ।




बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

कर्जदार रह जायेंगे

-इंदु बाला सिंह


सपने नहीं तो माटी के पुतले हैं हम ..

बिना कुछ दिये चले जायेंगे

बस ...पूर्वजों के कर्जदार रह जायेंगे  ।

बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

क्यों जना था उसने बिटिया


-इंदु बाला सिंह

दुखी है वह

गुजर गयी उसकी बेटी ...

अपमानित है वह

कितना तड़पी होगी बेटी बलात्कार के समय ...

उसकी बेटी सपना संजोयी थी ..

नवमी में मिलनेवाले अच्छे खाने का ... पैसों का ....

बस्ती की सभी लड़कियां चहक रही हैं ..

दौड़ रही हैं ...

वह सूनी आंखों से देख रही है खुले दरवाजे की ओर

अभी पिछले सोमवार की ही तो बात है जब वह बाहर सड़क पर खेल रही थी ...

फिर गायब हो गयी थी उसकी आठ वर्षीय  बच्ची...

आज सब बेटियों की माँ चहक रही है ... खुश हैं

और वह सोंच रही है क्यों उसने जना था बिटिया ।


गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

सुनहरे रिश्ते

- इंदु बाला सिंह

युध्दोपरांत  परिस्थितियां बदल गयीं

 रिश्तों का धागा न जाने कब टूट  गया

हम क्या से क्या हो गये ।






ठोंको न ! ...दरवाजा

- इंदु बाला सिंह

समय की मांग है ..

चलना है ... चलते रहना है  ।

हर पल ठोंकते रहना है ... किस्मत का दरवाजा

कभी न कभी तो खुलेगा दरवाजा ....

आज नहीं तो कल ... कल नहीं तो परसों या नरसों ।

मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

मैं और समस्याएं

समस्याएं  मुझे छलती रही

इन पत्थरों पर   पैर रख मैं ऊपर उठती गयी

राह के दलदल में फंसने से बचती गयी ....

इनकी  लौ में मेरी अज्ञानता का अंधियारा सिमटता गया

निकटस्थ के फंदे कटते गये .....

समस्याओं ने  मुझमें जीने का जज्बा पैदा किया ।

बुधवार, 26 सितंबर 2018

ग्लोबलाइजेशन

- इंदु बाला सिंह

गाते थे हम ..

रंग बिरंगा ये देश है मेरा

है इसकी .... भिन्न भिन्न  बोली ।

अब गाते हैं हम ...

रंग बिरंगी ये दुनिया है मेरी

भिन्न भिन्न है इसकी बोली और भिन्न भिन्न हैं देश हमारे ।

हम एक हैं

हम धरती की संतान हैं  ।



सोमवार, 24 सितंबर 2018

परिवार की परिभाषा

- इंदु बाला सिंह

समय बदल रहा है...रुपये का मोल भी

पुरुष धूरी बन रहे हैं घर की

महिलाएं उनके इर्द गिर्द हैं .....

पुरुष दुकान में सामान सजा रहे है

महिला काउंटर पर सामानों की लिस्ट फीड कर रही है ...

वीसा कार्ड स्वाइप करवा रही है...

महिला की औलाद दीवार की ओर मुंह कर बैठी है और  ....अपने स्कूल का होमवर्क कर रही  है ...

घर की ही  तरह दुकानों में भी कोई इतवार नहीं होता

घर की कोई अकेली पैरेंट महिला बोझ नहीं है असेट है

शहर में परिवार की परिभाषा बदल रही है ।





रविवार, 23 सितंबर 2018

टीम स्पीरिट

- इंदु बाला सिंह

नौकरी छूट गयी ....बीमार था वो ....
उसे हार्ट ट्रांसप्लांट की आवश्यकता थी ...
हार्ट डोनर उसे मिल गया
पर पैसे !
अपने एल्युमनी साइट पर उसने अपनी समस्या पोस्ट की
एक रात में उसके अकॉउंट में एक करोड़ रुपये जमा हो गये
पिता  की आंखें छलक उठीं ....
पड़ोसी हैरत में थे ।

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

पुस्तकें

- इंदु बाला सिंह


किताबें तो किताबें होतीं हैं नयीं हों या पुरानीं

इतिहास कीं हों या विज्ञान कीं

गणित की हों , महापुरुषों या  परियों की ..

रख दो न उन्हें आलमारी में नैपथलीन की गोलियां डाल कर

क्या  पता घर में कोई बालक पुस्तक प्रेमी निकल जाये

और ये पुस्तकें उसकी मित्र बन जायें

उसका मार्गदर्शन करें ....

जिसने भी पुस्तकों से प्रेम किया

पुस्तकों ने उसका साथ ...आजीवन निभाया ।

रविवार, 16 सितंबर 2018

पितृसत्ता की समर्थक

- इंदु बाला सिंह

पचासी साल की वह हमारी रिश्तेदार उम्रदार कभी न भायी मुझे ...

उसे लड़के पसन्द थे ..

उसने कभी लड़कियों की आजादी व हक के बारे में कुछ न कहा ..

उसका ब्रम्ह वाक्य था ...

' लड़की को कोई पिता मकान या खेत अपनी वसीयत में नहीं लिखता है '...

और पिता अपनी बेटी के नाम लिख भी दे खेत और मकान तो भाई और अड़ोस पड़ोस के लोग  उसे लेने नहीं देते हैं....

पिता के गुजर जाने पर लोग उसे अपने पैतृक घर से भगा देते हैं ...

और एक दिन तो उस बुढ़िया ने कमाल कर दिया..

पड़ोसन की बिटिया जब अपने मैके अपनी तीन वर्षीय बेटी  ले के आयी ...

वह कहने लगी ..
कितना प्यारा बेटा है इसका ।

जब मैंने कहा ..
 अरे बिटिया है उसकी !

मुझे मालूम था वह जान बूझ कर झूठ बोल रही  थी ...

पड़ोसन की बिटिया सड़क पर भी नंगी खेलती थी ....आखिर कितनी चड्ढी धोती उसकी मां ...

पल भर में वह कह उठी ...

क्या मैं उसका पैंट खोल के देखी हूं ।


वह पितृ सत्ता  की समर्थक थी ।

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

अनुत्तरित प्रश्न

- इंदु बाला सिंह

कहते हैं सपनों को मरने देना अच्छा नहीं

पर मन रेगिस्तान बन जाये तो ! ....

हल्की फुल्की बारिश और तपिश पैदा करती है मन में .....

बाढ़ ही उपजाऊ बना पाती है रेगिस्तान को ।


मन ऊबता है

पर सपने देखना नहीं छोड़ता है

क्या तुम्हारे साथ भी ऐसा होता है ?

मुझे मालूम है इस प्रश्न का उत्तर न मिलेगा .....

पर मन गाहे बगाहे तलाशता है उत्तर ।

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

शाम हर रोज आती है


- इंदु बाला सिंह

शाम आती है

तैयार करती है हमें

नयी सुबह के लिये ....

कभी कभी शाम आती है

हमें अलविदा कहने के लिये ...

बेहतर होता है .… कम असबाब रखना ।

समंदर


-इंदु बाला सिंह

समंदर मेरी खिड़की से झाँका ..
मुस्काया .....

याद करो !

पिछली बार तुम मुझसे मिल न सके ..

इस लिये मैं आ गया तुम्हारी खिड़की पे ...

घबड़ा कर मेरी नींद खुल गयी ....

भोर हो चुकी थी

सूरज सागर का जल सुनहला बना दिया था ....

मेरी खिड़की के सामने विशाल समंदर लहरा रहा था ।


बुधवार, 5 सितंबर 2018

मुट्ठी खुलते ही दुआ बरसने लगी



-इंदु बाला सिंह


दिन में आंख लग गयी

न जाने कैसे बन्द मुट्ठी खुल गयी

और फिसल पड़े किस्मत के बीज ....

उस रात जोर की बरसात हुई

बीज .... मिले न वापस .....


खाली हाथों को मैं देखती रही ....


एक दिन भोर आंख खुली

पौधे लहलहा रहे हैं ... घर की चहारदीवारी में ...

ओह ! मेरी बन्द मुट्ठी के बीज पौधे बन गये ..

उन्हें हर शाम पानी देना जरूरी था

भोर भोर अखबार की टोपी पहनाना भी याद रखना था ...

किस्मत मुट्ठी से निकली न थी

वह पौधों में परिवर्तित हो गई थी ....

....…........

दूर बैठे बच्चे मां के एक वीडियो कॉल से सामने आ जाते थे ..

उच्चपदस्थ छात्रों की दुआ बरस रही थी ।





मंगलवार, 4 सितंबर 2018

अपने


- इंदु बाला सिंह

1

बेटी ने आत्महत्या कर ली
उसकी बिटिया पिता ले कर चले गये अपने घर ...

2

बिटिया ने आत्महत्या कर ली
उसका बेटा अपने घर ले गये पिता
पर संग ले गये अपना दामाद ....
अरे ! घर में रहेगा ....खायेगा पीयेगा ....
कम से कम नाती अपने पिता को तो न खोयेगा ....

आखिर ...ये बेटियां क्यों आत्महत्या करतीं हैं ?
वैसे सुनी सुनायी बात ही रह जाती है ....
बेटियां तो बीमारी के कारण मरती हैं ।

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

मैं ही सर्वश्रेष्ठ

- इंदु बाला सिंह

स्कूल

हमउम्रों का जमावड़ा ....

 दोपहर का भोजनालय है ....

पहचान है .....

शान है ......

क्या होगा पढ़ कर

हिस्ट्री जाग्रफी .....

नॉकरी तो मिलती नहीं ....

मॉरल साइंस फेल मार जाता है समाज में ...

विज्ञान मुंह ताकता रह जाता है ....

भला

इतनी हताशा क्यों ? .....

मैं ही मैं क्यों ? .....

दोषारोपण कर मुक्तिलाभ क्यों ?

इतना नकारात्मक भाव !





भींगता अस्तित्व

-इदु बाला सिंह


कमरे में मन भींज जाता है ...बिन पानी के
न जाने कैसे.....
कोई प्रश्न नहीं
कोई उत्कंठा नहीं ....
शायद मन की बर्फीली सिल्ली
भींजेपन का अहसास दिलाती है ।


सोमवार, 13 अगस्त 2018

बेटा और पिता

-इंदु बाला सिंह

पिता ऐसे भी होते हैं ....

अपनी औलादों की जिम्मेदारी से चिंतामुक्त रहते हैं

बेटी तो दान हो जायेगी..दूसरे के घर की शोभा बढ़ायेगी

बेटे को मेरी जरूरत होगी तो मुझे ढूंढ़ता आयेगा

ये पिता ..  अपनी पहचान ... अपने जन्मदाताओं में तलाशते हैं

और आजीवन बंधनहीन रह स्वान्तः सुखाय की भावना से ओतप्रोत रहते हैं ।

आखिरी दांव

-इंदु बाला सिंह

आखिरी दांव भी क्या भावना है !

आदमी इस पार या उस पार हो जाता है

बस तख्ता पलट जाता है

बांझ क्या जाने पीर जनने की ।

बुधवार, 8 अगस्त 2018

चोटी की छांव

-इंदु बाला सिंह

चोटी की भी छांव होती है
सुस्ताते हैं इसमें अपने ....
छांव देख पाने की आंखें होनी बड़ी  जरूरी हैं ।

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

देववाणी

-इंदु बाला सिंह


बेटी ने कहा ....
तुमने पैदा कर के अहसान नहीं किया

बेटे ने समझाया ....
मेरी भी इच्छाएं  हैं जीवन में ...आखिर मेरा भी भविष्य  है


भौंचक मां सोंच रही है ...
मेरी किस्मत में कैसे अपने जोड़े दैव ने

आकाश खामोश है

देववाणी फिल्मों में होती है ।

रविवार, 1 जुलाई 2018

तू है कि मानती नहीं



Tuesday, June 19, 2018
7:34 AM


-इंदु बाला सिंह


झूठ से  इतनी नफरत !

इतनी जिद ...

यार !

थोड़ा बहुत झूठ तो चलता है

क्यों चिढ़ती हो तुम .....

सच में झूठ थोड़ा झूठ मिलाने से चटपटी हो जाती है जिदगी

एक ठहाका भगा देता है दुःख को दूर ............

पर तू है कि मानती नहीं

सच की तपिश में झुलसती रहती है ]

शुक्रवार, 22 जून 2018

एक मरु - उद्यान

-इंदु बाला सिंह


हर पल जीना

अथक श्रम करना

हिम्मत न हारना

सुख की नींद लेना

कि

ओ युवा !

तेरी भुजाओं में ....तूफ़ान है ... तेरा ईमान है

लिंगभेद से परे ... तू इंसान है .... तू महान है

तुझमें प्रकृति ने अपना अंश दिया है ....

तू

पहाड़ सा कठोर है

वर्षा जल सा निर्मल है

अरे !

तू तो एक मरु - उद्यान है

अपनी मां का जहान है  |

गुहार है

-इंदु बाला सिंह



मोह भंग हुआ ....आस  न टूटी

कर्तव्य डोर कस के जो बंधी  थी

बड़ी कठिन डगर थी ....

ओ असीम शक्तिमान !

शक्ति के अहसास की आस है

मन में शक्ति देना |


बोलने दो

-इंदु बाला सिंह


चुप्पी बहुत शोर करती है

बोलने दो उसे ....

तुम अनसुना कर देना

आखिर थक ही जायेगा वह ....

तुम मन में कोई खुशनुमा गीत

बस गुनगुनाते रहना ......

बोलने दो उसे .....

मौन एक आत्मघाती बम है

फटेगा तो तुम्हें भी लील लेगा ....

तुम सतरंगी गीत गाते रहो न |




रविवार, 20 मई 2018

नसीबोंवाली


- इंदु बाला सिंह

शाम हो गई है

लोग अपने घर लौट रहे हैं

पर मैं लौट रही हूं अपना सिर छुपाने की जगह में ....

रात जितना गहरायेगी

उतना ही मधुर तान निकलेगा कण्ठ से

उस कहानीवाली चिड़िया की तरह ...


" मैं सबसे धनी .....मैं सबसे धनी ... "


आखिर मेरे सिर पर छत है ....

मैं नसीबोंवाली हूँ ।


शनिवार, 19 मई 2018

और मैं निकल पड़ी



Monday, April 02, 2018
6:17 AM


-इंदु बाला सिंह



भीड़ में रह कर भी भानेवाला अकेलापन

न जाने कैसे बदल गया

सूनेपन में .....

यह आंधी से पूर्व की निस्तब्धता थी

आंधी का सामना कर पाना भी तो मनोबल बढ़ाता है

और

मैं निकल पड़ी |

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

भूख जरूरी है |



Tuesday, May 01, 2018
9:56 AM

-इंदु बाला सिंह


राजनीतिज्ञ सपने बेचता है

अबोध मन को होश आते ही नींद टूट जाती है

उम्र गुजर चुकी रहती है ..

जीवन की खुशी तो अबोधता में ही है ....

आधा पेट खा ... सो कुत्ते की नींद ..ओ स्वप्निल युवा |

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

मन का भेड़िया



Saturday, April 21, 2018

8:26 AM

-इंदु बाला सिंह


 पारिवारिक पुरुष मित्र के मन का सोया भेड़िया एक दिन जाग गया .....

वह

भोर के अंधियारे में माता पिता के बगल में सोयी : मास की बच्ची  ले भागा  ....

शारीरिक सुख लेने के बाद अभागे दम्पत्ति की बेटी पटक दी गयी  ....

भला हो सी० सी० टी० वी० का जिसने पहचान करवा दी उस नर भेड़िये की .....

: माह की गुजर गयी बच्ची आज भोर की एक खबर भर थी ....

कल अन्य नव निर्माण की  खबरों के साथ दूसरे बलात्कार की खबर मिलेगी अखबार में ...

और फिर बिलबिला कर कलम चलेगी किसी लेखक की ..........

गुजरी बेटी का परिवार.... रोज रात  मर जाता है

जाने कैसे जी उठता है वह ... हर दिन ....हर भोर  ...

शायद उसे  अपने दूसरे बच्चों के पेट की भूख ने  जिन्दा रखा है |




रविवार, 15 अप्रैल 2018

अदम्य आकांक्षा



Monday, April 16, 2018

6:39 AM

हर हार के बाद फनफना उठता है मन 

क्रोधित हो दौड़ पड़ता है वह ....एक जीत के लिये ....

तुम मुझे ठग न सकती 

ओ क्रूर नियति !

तेरी हार का डूबता सूरज देखने की अदम्य आकांक्षा है ।

मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

धुंध की छांव



Tuesday, April 10, 2018
3:17 PM


-इंदु बाला सिंह


सूरज निकला

धुंध हटी

दूर दूर तक हृदय विदारक दृश्य था .....

धुंध में आस थी ....सपने थे ....

झुलसने लगा पौधा ....

घबरा कर मैंने बादल का आह्वान किया 

धुंध भली होती है क्या ?

उठने लगा एक प्रश्न .... मन में |

मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

मधुशाला


-इन्दु बाला सिंह


माना भेद मिटाये तेरी हाला
ओ री मधुशाला !
पर कितने घर तोड़े तूने ...... तू क्या जाने
ज्यों ज्यों रात गहराये
तू इठलाये ... मेरा जी जलाये ।

बेटे का बाप



Wednesday, April 04, 2018
6:54 AM

-इंदु बाला सिंह


मुझे बुखार है ...
मेरा दम फूल रहा है ...
बेटा ! मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूं ......
वहीं इलाज कराऊंगा .....
पिता ने कहा |
आ जाईये .....
बेटा मैं शाम की ट्रेन से आऊंगा ....
कल तक पहुंच जाऊंगा .....
और पिता चले गये ....
गांव में रहनेवाले अकेले पिता के लिये शहरी बेटे के घर में जगंह नहीं थी |
क्रिया कर्म के लिये बेटा किराये की गाड़ी से गांव पहुंचा .....
बाप लावारिस नहीं था ...
गांव में शहरी आदमी की शान होती है |


शुक्रवार, 30 मार्च 2018

चुनौती एक उत्प्रेरक है


- इंदु बाला सिंह


तुम्हारी चुनौतियां मेरे जीत के जज्बे को बढ़ाती हैं

मैं चाहता हूं .....


तुम मुझे अहसास दिलाते रहो


 अपनी उपस्थिति का

और 

मेरे मन में जलती रहे आग जीतने की ....

मैं दिखाना चाहता हूं तुम्हें 


अपनी जीत का मंजर ।

मनभावन लड़ाई


-इंदु बाला सिंह


लड़ाई है यह ...

पहचान की


नाम की


अहसान की


अस्तित्व की


हक की


आत्मसम्मान की


एक बेटी की लड़ाई है यह ..


उसके बुरे समय से


उस के वजूद की ....


हर लड़ाई आदमी अकेले ही लड़ता है


बाकी सब तो दर्शक हैं 


वे अपने मनचाहे , मनभावन दृश्य के अनुसार ताली बजाते है ....

निकटस्थ लोग अपना मनोरंजन करते है ।

अभाव ही भूत है


-इंदु बाल सिंह

आर्थिक रूप से गरीब को कोई नहीं पहचानता 
वह , अस्तित्वहीन चलते चलते गिर जाता है
उसकी मौत का जिम्मेवार कोई नहीं होता
पर प्राण निकलते ही उस गरीब की अहमियत हो जाती है
उसके मृत शरीर को अपने पहचान लेते हैं
उसका क्रिया-कर्म करते हैं ...
अपनों को उस गरीब के भूत बन जाने का भय सताने लगता है ।

सफलता का रहस्य


- इंदु बाला सिंह

गांव के मिडिल स्कूल के मास्टर का लड़का बिजिनेसमैन बन गया ...
अपने शहर का एक नामी व्यक्ति और मकान मालिक बन गया ...
पर उस गोरे चिट्टे आदमी की कलूटी पत्नी को देख लगता था ...
जरूर उसने डट के दहेज लिया होगा ...
और एक दिन मैंने सुना उस गोरे चिट्टे बेटे का पिता गंगा में डूब गया ..
सफल पुत्र के पिता की ये कैसी जीवन यात्रा थी ..
कहते हैं सफल पुत्र को देख पिता अपनी मूछ पर ताव देता है ।

शतरंज लुप्तप्राय नहीं हो सकता


-इंदु बाला सिंह


जिंदगी शतरंज है ...
इसमें
पैसेवाले जीतते हैं ...
गरीब मिटते हैं
मध्यम वर्गीय अपने डैनों में अपने परिवार छिपाये रखते हैं ...
बाकी अनाथ किसी के जीने का माध्यम बन जाते हैं ।
वर्गभेद न हो
तो जीने का माध्यम ही न हो ....
कहानियां कैसे बनें ..
हम वर्गभेद बनाये रखते हैं ....
शतरंज का खेल खेलते रहते हैं ।

लेखक बनो , नाम कमाओ


- इंदु बाला सिंह


रोती महिला पर लिखो .....
पिटती औरत पर लिखो ....
परिवार का पेट भरने के लिये बिकती औरत पर लिखो ....
अरे !
कलम चलाना है ...
नाम कमाना है ....
तो लिखो न अपनी माँ पर
जिसे तुम याद करते हो आज भी अपने संस्मरण में फेसबूक पर ...
वैसे मां के वृद्धाश्रम में रहने का खर्च तुम्ही तो उठाते हो ।

दादी की कहानी ... 1


- इंदु बाला सिंह
गांव में दादी कहानी सुनाती थी ...
एक बार ब्रह्मा पेट बनाना भूल गये
और आदमी रिश्ते पहचानना भूल गया
तब से ब्रह्मा बड़ी सावधानी से अपनी सृष्टि रचते हैं ।
मैं अपने पोते को कहानी सुनाती हूं ....
एक आदमी था
वो पैसे संचय करना भूल गया
और रिश्ते उस आदमी को भूल गये ।

मन न मारना


- इंदु बाला सिंह

मन एक प्यारा सा भोला बच्चा है 
वह चुप रहता है ..
अपनेआसपास की दुनिया देखता रहता है ....महसूसता रहता है ।
इसे फुसला कर हम इससे बहुत सारे काम करवा लेते हैं ....
पर यह अपनी चंचलता , ताजगी खोने लगता हैं ...
अबोध मन सपने देखता है
आखिर क्यों मारते हैं हम अपना मन ।

सत्तर साला औरत - 3


-इंदु बाला सिंह
वह दादी थी ..
वह नानी कहलाना भूल चुकी थी ...
न जाने क्यों ।

मैं पैसा हूं


- इंदु बाला सिंह
मैं पैसा हूं 
मेरी कोई जाति नहीं ...
मेरा कोई धर्म नहीं
मैं सबको जोड़ कर रखता हूं
मझे सब प्यार करते हैं
छोटे बच्चे किलक उठते हैं मुझे पा के
मैं उन्हें चॉकलेट और गुब्बारे दिलाता हूं
अमीर हो या गरीब सभी मेरी इज्जत करते हैं
मैं साधू सन्यासी के भी काम में आता हूं ।

लगा दे कोई एक कैमेरा


-इंदु बाला सिंह

मेरे शहर के कूड़ेदान पे ...
लगा दे कोई ..
एक कैमरा .....
न जाने कौन बिखेरता है कूड़ा दूर दूर तक
मेरी सड़क पे ।

उपहार हैं वें .... रिश्तेदार हैं वे |


Thursday, February 01, 2018
9:45 AM
-इंदु बाला सिंह

अपनों को माफ़ करते वक्त पत्थर बन जाता है कलेजा
और फिर रसधार नहीं फूटती
उस अपने के लिये ...
पर किसी न किसी मौसम में रसधार तो फूटेगी जरूर .....
आखिर अपने ही तो हैं वे .....
अपनों के उपहार हैं ....वे रिश्ते |

मन ही मनहूस हो गया है


Thursday, February 01, 2018
9:28 AM
-इंदु बाला सिंह
डूबता सूरज सा मन मनहूस होने लगता है
शायद मन ही मनहूस हो गया है .... न जाने क्यों !
वर्ना दिन भर के श्रम से शिथिल पड़ा बादलों की सेज पर विश्राम करता सूरज कभी दुखी न महसूस होता ..
सूरज तो सुख निद्रा में डूबा है
उसे सुबह उठना है
उसके कंधों पर जिम्मेवारी है |

बच्चा बनना भला


-इंदु बाला सिंह

अपमानित मन टूटे न 
दुखी न होय
बुजुर्ग ....बस बच्चा बन जाय ....
छोटी छोटी खुशियां तलाशे ...
और वह .... खुश हो जाय
बच्चा बन मुस्काना भला लागे उसे ।

छाता जरूरी है


-इंदू बाला सिंह

मां छाता होती है 
बच्चे को धूप , बरसात से बचाती है ....
रात में लाठी का काम करती है ..
एकदिन छाते की सियन टूट गयी ....
मुझे उघड़े छाते के साथ आफिस जाना पड़ा ..
और मुझे कमी महसूस होने लगीे छाते की ......
मैं सुई खोजने लगी ।