शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

छेड़ो न दीपक को

- इंदु बाला सिंह


जलने दो दीपक को

थोड़ा सा ही तो स्नेह है

खुद बुझ जायेगी वह आशा - लौ ...

तुम्हें उस दीपक से दिशा-ज्ञान नहीं चाहिये न सही

हो सकता है किसी भटके पथिक का वह  पथ प्रदर्शक बन जाये

छेड़ो न तुम लौ को .... दिख जायेगा तुम्हारा चेहरा हर किसी को ।


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