- इंदु बाला सिंह
जलने दो दीपक को
थोड़ा सा ही तो स्नेह है
खुद बुझ जायेगी वह आशा - लौ ...
तुम्हें उस दीपक से दिशा-ज्ञान नहीं चाहिये न सही
हो सकता है किसी भटके पथिक का वह पथ प्रदर्शक बन जाये
छेड़ो न तुम लौ को .... दिख जायेगा तुम्हारा चेहरा हर किसी को ।
जलने दो दीपक को
थोड़ा सा ही तो स्नेह है
खुद बुझ जायेगी वह आशा - लौ ...
तुम्हें उस दीपक से दिशा-ज्ञान नहीं चाहिये न सही
हो सकता है किसी भटके पथिक का वह पथ प्रदर्शक बन जाये
छेड़ो न तुम लौ को .... दिख जायेगा तुम्हारा चेहरा हर किसी को ।
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