गुरुवार, 6 सितंबर 2018

समंदर


-इंदु बाला सिंह

समंदर मेरी खिड़की से झाँका ..
मुस्काया .....

याद करो !

पिछली बार तुम मुझसे मिल न सके ..

इस लिये मैं आ गया तुम्हारी खिड़की पे ...

घबड़ा कर मेरी नींद खुल गयी ....

भोर हो चुकी थी

सूरज सागर का जल सुनहला बना दिया था ....

मेरी खिड़की के सामने विशाल समंदर लहरा रहा था ।


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