गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

घुमक्कड़

-इंदु बाला सिंह

यूं लगता है ... लम्बे लम्बे डग भरती  पाजामे और जैकेट में चली जा रही है मेरी काया हल्के धुंधलके में

कोई उत्तेजना नहीं ... बस चली जा रही है मेरी काया ....

और में देख रही हूं खुद को ।

वैसे घूम फिर कर लौटेगी काया जरूर

मन का साथ छूटेगा नहीं ..

कभी कभी बस यूं ही घूम फिर आना अच्छा लगता है ....

बिना ट्रेन , ऐरोप्लेन हम कहां कहां घूम आते हैं

मानव जीवन भी अद्भुत है

पगडंडियों  से गुजरता है

अनुभवों के सागर में  गोता लगाता  है ।

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