- इंदु बाला सिंह
लो छिड़ा दूसरा जीवन युद्ध
चले हम ....
आज न संग कोई
हुये उन्मुक्त हम ....
बांध चले कमर में
आज तो कफ़न हम ...
छिड़ा युद्ध स्वाभिमान का .. मान का
लो बटोर चले हम तो यादों के लम्हे ....
जहां रात कटी वहीं बसा घर
हर भोर सामने नया मैदान था ...
हम तो बनजारे हो चले
लो छिड़ा दूसरा जीवन युद्ध
चले हम ....
आज न संग कोई
हुये उन्मुक्त हम ....
बांध चले कमर में
आज तो कफ़न हम ...
छिड़ा युद्ध स्वाभिमान का .. मान का
लो बटोर चले हम तो यादों के लम्हे ....
जहां रात कटी वहीं बसा घर
हर भोर सामने नया मैदान था ...
हम तो बनजारे हो चले
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