-इंदु बाला सिंह
आखिरी दांव भी क्या भावना है !
आदमी इस पार या उस पार हो जाता है
बस तख्ता पलट जाता है
बांझ क्या जाने पीर जनने की ।
आखिरी दांव भी क्या भावना है !
आदमी इस पार या उस पार हो जाता है
बस तख्ता पलट जाता है
बांझ क्या जाने पीर जनने की ।
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