झाड़ू का
मशीनीकरण हो रहा है
शायद
इसीलिये
अब स्कूटी पे
सवार झाड़ूदार नहीं दिखते
सड़क
पे ..................
सब अपनी झाड़ू
से
खुद ही सफाई
करने में
लगे है
अपने घर की
क्या पता
कौन बड़ा आदमी
आ जाए
घर में
घर की गन्दगी
देख
हमारे बारे
में
छाप दे
अख़बार
में लोग ...........
रात को झाड़ती
नहीं मैं घर
क्या पता
लक्ष्मी चली जाये कब
दिन में ही
सदा झाडूं
पड़ोसी सड़क पर
मेरे फेंके कचड़े बड़े ध्यान से निहारे .........
मैं क्रोध से
मन ही मन फुफकारूं.....
अबे !
कचरा
चुननेवाले
जो मन भाए उठा
ले न
मैंने तो फेंक
ही दिया सड़क पे .........
मशीनी झाड़ू
बड़ा महंगा है
खरीदना
मुश्किल है |
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