बेटी ने जब न समझा
कर्तव्य माता - पिता के प्रति
हर रस्म पर मुस्काई
वह .........................
पर
दहेज के सामान देख
अपमानित न हो पाई वह .........
हर मौके पर
ले चली उपहार बेटी
अपने घर
तो बहू को क्या दोष दूं
जिसने
सास ससुर को अपना न समझा
और
ले उड़ी इकलौता पुत्र
जो था उनका
राजदुलारा
कृष्ण - कन्हैया
आँखों का तारा
वंश चलानेवाला
मुखाग्नि देनेवाला .....
आज पैतृक हक की समानता के लिए खड़े
बेटी -बेटे में कोई फर्क न
और न हे फर्क है
दामाद बहू में
प्रेम आशा लुटा खड़ा मन
देख रहा जी
सबल सन्तति का अद्भुत नृत्य
जिसे देख
शिव भी शर्मा जायें ..............
कितना स्वार्थपरक मन है
वह
जिसमें अधिकार है
कर्तव्य नहीं
शोषण है प्रेम नहीं |
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