रात्रि
!
तू महकाए
कक्ष मेरा
और
बुझाये
मेरी जठराग्नि
.......
खुश होऊं मैं
इंतजार करूं
मैं तेरा
ओ रात्रि !
तू ही तो
जन्माती आशा का सूरज
नित मेरे मन
में ...........
सदा चाँद से
प्रकाश ले
प्रज्ज्वलित
करूं मैं
अपने ज्ञान का
दिया
और
सोऊं मैं
हो निश्चिन्त
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