शनिवार, 22 मार्च 2014

मित्र रात्रि


रात्रि !
तू महकाए
कक्ष मेरा
और
बुझाये   
मेरी जठराग्नि .......
खुश होऊं मैं
इंतजार करूं मैं तेरा
ओ रात्रि !
तू ही तो जन्माती आशा का सूरज
नित मेरे मन में ...........
सदा चाँद से
प्रकाश ले
प्रज्ज्वलित करूं मैं
अपने ज्ञान का दिया
और
सोऊं मैं
हो निश्चिन्त | 

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