प्रेम
चिरैय्या
उड़ा दिया
उसने
एक रात
बंद पिंजरे
से
उसने
...............
और
रात भर
वह चिरैय्या
बैठी रही
रोशनदान में
भय से
न निकली बाहर
भोर की पहली
किरन फूटते ही
खिड़की पर बैठी
चहकी
उड़ गयी
वह चिरैय्या
प्रसन्नचित्त
अब
वह रोज आती है
अपने सखा के
पास
गीत गाती है
पर
वह उसे दाना
नहीं डालता
आशा
बुरी बात है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें