मंगलवार, 18 मार्च 2014

चहकती है चिरैय्या

प्रेम चिरैय्या
उड़ा दिया उसने
एक रात
बंद पिंजरे से
उसने ...............
और
रात भर
वह चिरैय्या बैठी रही
रोशनदान में
भय से
न निकली बाहर
भोर की पहली किरन फूटते ही
खिड़की पर बैठी
चहकी
उड़ गयी
वह चिरैय्या प्रसन्नचित्त
अब
वह रोज आती है
अपने सखा के पास
गीत गाती है
पर
वह उसे दाना नहीं डालता
आशा
बुरी बात है |



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