कहाँ उड़ चला
है
मन
पाखी ..................
गगन के
पंछियों को देख
निकल
पड़ा है ................
परेशान हो
लो
मैं भी उड़
चली
बुद्धि
के खटोले पे ..........
खोजूं
हो विह्वल
मैं
निज
मन .........
भला क्या जी
पाउंगी
जब
गुम
जायेगा मन |
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