डेढ़ वर्षीय
बच्ची का
पिता के आफिस
जाते वक्त
माँ की गोद
में रोना
तो
समझ आता था
पर
आफिस से
पिता के
लौटने पर
बरामदे
में खड़ी बच्ची
पिता को देखते
ही
जब डहुरने
लगती थी
तब मैं
बड़े असमंजस
में पड़ जाती थी
और
मुझे
उस ससुराल की
बेटी से
अपने पिता से
मिलना
और
बिछड़ना
याद आ जाता था
........
न जाने क्यों
और
वह
नन्ही बच्ची
आफिस से लौटे
पिता को देख
खुश न होती थी
...............
भला क्यों
वह
माँ के पास रह
कर भी
पिता के लिए
कलपती थी |
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