बाबुल प्यारे
पंख काट
तूने
दिया मोहे
उड़ाय
और
दिया बैठाय
जल
जहाज में ........
आज
जहाज गया है
डूब
उड़ उड़ बैठूं
इस वृक्ष से
उस वृक्ष पर
पर
मोहे
कागा
दे मार भगाय ........
बाबुल मेरे
कोसूं मैं
तोहे
प्रतिदिन
आखिर क्यों
काटे तूने
मेरे पंख
.......
सुदूर पहाड़ी
उड़ न पाऊं मैं
गीत गा न पाऊं
फल न खा पाऊं
मैं
बाज
का डर लागे
मोहे |
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