जायदाद की
मालकिन
है तो क्या
हुआ
बैंक और
कोर्ट तो नहीं जा सकती है न वो
पति के मित्र
तो
पति
के जाते ही दूर चले गये
अकेली बूढ़ी
महिला से कौन दोस्ती करे |
नौकर चाकर
और
फोन पर
कंट्रोल रहता था
पुत्र का
मुहल्ले और
अपनों की खबर से
कहीं दुखी न
हो जाय माँ |
मुहल्ले की
खबर से अनजान
माँ
सदा अतीत में
जीती थी
वह सपने में
अपनों को खाना
परोसती थी
अपनी बिटिया
के संग
खेलती थी वह |
धीरे धीरे
माँ के संग
जायदाद
भी कब्जे में आ गयी थी
बस
अब
कोई समस्या न थी
विदेशी
पुत्रों के लिए |