रविवार, 30 मार्च 2014

बूढ़ी मालकिन


जायदाद की मालकिन
है तो क्या हुआ
बैंक और कोर्ट तो नहीं जा सकती है न वो
पति के मित्र तो
पति के जाते ही दूर चले गये  
अकेली बूढ़ी महिला से कौन दोस्ती करे |
नौकर चाकर
और 
फोन पर कंट्रोल रहता था
पुत्र का
मुहल्ले और अपनों की खबर से
कहीं दुखी न हो जाय माँ |
मुहल्ले की खबर से अनजान
माँ
सदा अतीत में जीती थी
वह सपने में
अपनों को खाना परोसती थी
अपनी बिटिया के संग
खेलती थी वह |
धीरे धीरे
माँ के संग
जायदाद भी कब्जे में आ गयी थी
बस
अब कोई समस्या न थी
विदेशी पुत्रों के लिए |


सन्तान

जॉनी ! जॉनी !
एस पापा
ईटिंग सूगर
नो पापा
ओपेन योर माउथ
आ ...............
मुंह में पूरा ब्रह्मांड दिखा
मुन्ने के
सहम गये पापा |

शनिवार, 29 मार्च 2014

विदा ....अलविदा



हवा में सुनेंगे 
हम 
अब तेरी आवाज को 
महसूसेंगे 
अपने पीछे 
तेरे अहसास को 
पर 
तुझे न पा 
आँखों के सामने
किसी काम में मन लगा लेंगे हम |
तेरे घर में
तेरे कमरे से
आधी रात को आती
तेरी आवाज सुन
चौंकेंगे हम
जरूर
पर
फिर हमें याद आएगा
ये कैसे हो सकता है
इन्हीं हाथों से ही तो
पिंडदान किया था
हमने तेरा
और
विदा किया था तुझे
इस जग से
तेरी पुकार
मात्र
हमारा वहम ही है |

सुखद समाज


दर्शक ,
विचारक ,
शिक्षक ,
छात्र ,
चिकत्सक .
रोगी ,
इंजीनियर ,
कारीगर
ने थामा
एक दुसरे का हाथ
और
खेलने लगे
मेरी गो राउंड
वातावरण खिल उठा
सब जी उठे
सुखद
समाज की नींव
पड़ रही  थी 

शहर सूना हो जाता है


कभी कभी
सन्नाटा सा छा जाता है
भरे पूरे शहर  में .......
कोई न पहचान का रहता है जब
हम मीलों चलते हैं तब
अकेले
निरुद्देश्य से
अपने ही स्थान में बैठे बैठे ........
हम यूँ ही
तब तक चलते रहते हैं
जब तक
अंधड़ थम न जाता |

भीख मांगती औरत




तू किसकी बेटी ?
ये तेरी कैसी है कहानी
हाय री नारी !










शुक्रवार, 28 मार्च 2014

स्टेटस सिम्बल


वाह जी !
वाह
पैम्पलेट मिले गेट के अंदर फिंके
नये खुले होटल के ......
दो सौ से ऊपर
नाश्ते और खाने के
सचित्र नाम और दाम के साथ थे छपे उसमें   ..........
जी खुश हो गया
हमारा आज प्रातःकाल
हम भी पहचानने लगे नये डिशों को
और
दाम भी जान लिए .......
शुक्रिया मार्केटिंग
अब
हमारी भी शान बढ़ी
ड्राइंग रूम में ..............
हम भी
चटखारा ले कर बतायेंगे
स्वाद
उन व्यंजनों के
आफिस में
जिन्हें
हमने कभी चखा ही नहीं ..................
लो जी
हम भी अब अमीर हुए
बतियाने लायक हुए 
उस ढीली हुयी जेब की
जो
थी कभी भरी ही न ...............
वाह जी !
अब
हम भी
अपना स्टेटस सिम्बल बढ़ाएंगे |





अधिकार है कर्तव्य नहीं



बेटी ने जब न समझा 
कर्तव्य माता - पिता के प्रति 
हर रस्म पर मुस्काई 
वह .........................
पर 
दहेज के सामान देख 
अपमानित न हो पाई वह .........
हर मौके पर 
ले चली उपहार बेटी
अपने घर
तो बहू को क्या दोष दूं
जिसने
सास ससुर को अपना न समझा
और
ले उड़ी इकलौता पुत्र
जो था उनका
राजदुलारा
कृष्ण - कन्हैया
आँखों का तारा
वंश चलानेवाला
मुखाग्नि देनेवाला .....

आज पैतृक हक की समानता के लिए खड़े
बेटी -बेटे में कोई फर्क न
और न हे फर्क है
दामाद बहू में
प्रेम आशा लुटा खड़ा मन
देख रहा जी
सबल सन्तति का अद्भुत नृत्य
जिसे देख
शिव भी शर्मा जायें ..............
कितना स्वार्थपरक मन है
वह
जिसमें अधिकार है
कर्तव्य नहीं
शोषण है प्रेम नहीं |

पुराने शहर का निचला तबका



कहने को
निचला तबका है
पुराने शहर में
पर
जीते हैं रिश्ते
वहीं
पितृहीन  बच्चे भी 
पलते हैं पढ़ते हैं
इन्ही कुनबों में ........
इन घरों के बच्चे
सरकारी स्कूल में नहीं
प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं
और
सुरक्षित भी रहते हैं समाज में ..........
उसी तबके से मिलते हैं
हमें
कारीगर
दुकानदार ........
यही तबका कभी कभी
एक बड़ा व्यापारी
भी गढ़ता है ........
यह
मेहनत कश निचला तबका
गूँथ कर रहता है
आपस में ........
इस तबके में
बुजुर्ग अकेले नहीं पड़ते
जीवन संध्या में
वे घिरे रहते हैं अपने घर में
छोटे छोटे  नाती नतिनी और पोते पोतियों से ...........
यहाँ
घर के युवा
काम पे
सुबह को निकल  रात को ही लौटते हैं .........
शहर के
ये मेहनतकश 
अभाव में भी
जीने की राह सिखाते हैं 
हमें |

जीवित सती

   

आम अच्छी पत्नी
छाया सरीखी
डोलती है
पति की मूर्ति के संग संग ........
कितना अद्भुत अहसास होता है
वह
जब
पत्नी रहती तो जरूर है
अपने मालिक की 
अधूरी छूटी
जिम्मेवारी भी पूरी करती है
पर
वह अशरीरी जीव सी
इधर उधर फिरती  है
जिसे
सांस न लेने देते हैं
उसके अपने
और हम ................
हमने
सती प्रथा बंद कर दिया है |

बाज से डर लागे



बाबुल प्यारे
पंख काट
तूने
दिया मोहे उड़ाय
और
दिया बैठाय
जल जहाज में ........
आज
जहाज गया है डूब
उड़ उड़ बैठूं
इस वृक्ष से उस वृक्ष पर
पर
मोहे
कागा दे मार भगाय ........
बाबुल मेरे
कोसूं मैं तोहे
प्रतिदिन
आखिर क्यों काटे  तूने
मेरे पंख .......
सुदूर पहाड़ी उड़ न पाऊं मैं
गीत गा न पाऊं
फल न खा पाऊं मैं
बाज
का डर लागे मोहे |

गरूर


धन की संगिनी बने
जब राजनीति
और
वे जब बौरायें
तब
तांडव करे ..........
उनके तेज से
धरा डगमग डगमग डोले
हम हो खामोश
देखते रहें 
इस धन की
विषाक्तता
और
गरूर को |

लौहपुरुष


सोनारा ठुक ठुक ...लोहरा एकै ठुक........
इतना मजबूत बन
रे इंसान
कि
मशीन बनाने वाला भी
अश करे
देख के तुझे |

बचपन का पाठ


प्रेम , कर्तव्य
और नैतिकता का
ऐसा पाठ
पढ़ा वह विद्यालय में
कि
आजीवन
उसका हाजमा दुरुस्त रहा ........
' उसने कहा था '
के नायक की तरह

न मिटा वह |

बुक मार्क


राजनीति अखाड़े का
हुआ है भई !
पुनरोद्धार
पिछली बार सस्ते से कागजे में
मिलते थे
पार्टी के प्रचार पत्र
अब तो
वे सुंदर से हैं
बुक मार्क सरीखे
सो मिलते ही
मैंने भी
रंग कर उन्हें फेवीक्रिल से
की उस पर चित्रित
सुंदर सी
मनचाही आकृति 
और
रख लिया
उसे
अपनी पुस्तक के

पन्नों बीच |

विचारो के पौधे

तुमने
अबतक जो कुछ दिया नारी को
उसे बाँट कर खुले दिल से
अपने विद्यार्थियों में
सोती है
वह
देखो
हो के निश्चिन्त
और
अब उसके विचारों के पौधे
नन्हे दिलों में
बढ़ रहे हैं |

खूबसूरत


खुबसूरत मन
देखने की फुर्सत नहीं किसी को
इसलिए
मैं ने
रंग लिया है तन
अब

लोग मुझे खुबसूरत कहते हैं |

घर के बाहर में स्त्री



स्त्री पर थोपी कुरीतियों के
विरोध में भी है पुरुष की राजनीति
यह भी खूब समझे स्त्री .......

स्त्री के दमन का हक
स्त्री को ही दिया है
पुरुष ने .........

आखिर घर में राजनीति करनेवाली
क्यों फेल हो जाती

घर के बाहर की राजनीति में |

मंगलवार, 25 मार्च 2014

बूढ़े का दुःख



बूढ़ा रोये
कोई न धावे
बालक रोये
पूरा घर धावे
कैसे कहूं
मैं भला
बूढ़ा बालक एक समान |

चाय वाली छोटी ही रह जाती है



आज
विचारमग्न है जी
चायविक्रेता सपने देख सकता है
बड़ा बनने का …...
बड़ा बन भी जाता है …..
घर में रोज चाय बना
पिलाने वाली
क्यों नहीं बड़ा बनने के सपने देख पाती ……..
सदा छोटी ही रह जाती है |

एक करोड़ का पैकेज



और भी दुःख हैं जमाने में       मियां के सिवा |

और भी पढाई है जमाने में इंजीनियरिंग के सिवा ||

चरण स्पर्श

एक ने
पैर की उँगलियाँ छूई
दूजे ने
घुटने के नीचे छूआ
तीसरे ने
घुटने उपर छूआ
वह बौखला गयी
देवरों के
इस चरण स्पर्श से |

बिटिया में बसे पिता



पिता
तारा बन गये
बिटिया बस देखती रही
कैम्र्रे से तस्वीरें खींचती रही
वीडियो बनाती रही
पत्थर बन गयी
वह |
हर रोज महसूसने लगी
वह
पिता के गुण खुद में
और
पिता की यादें
उसकी सूखी  आँखों से 
भाप बन
उड़ जाती थीं
वह क्रूर हृदया  थी |

लैंप पोस्ट



लैंपपोस्ट के नीचे 
कोई नहीं दिखता 
आज पढ़ते 
अब 
हम सम्पन्न हो गए हैं |

सोमवार, 24 मार्च 2014

निज कर्म करें



नैतिकता मुक्त होगी
एक दिन जरूर
राज करेगी ........
और
गमकेगी
हमारी सुबह .........
चल बांध लें मुट्ठी में
अपना समय
कर्म करें .........
निज कर्म करें |

भोर का सूरज


ओ रे !
सूरज
सुबह सबेरे
तू क्यों बन जाए 
लाल कुरमुरा पराठा सा
मेरा मुन्ना
कलपे
देख तुझे .............
भाग को कोसूं मैं
जब तरसे
देख तुझे
ठुनके
न खाना चाहे
चाय रोटी .............
मैं भी तुझसे कम नहीं
सुन सूरज !
तेरे ही गुन  सीख बड़ी हुयी
मैंने भी
बर्तन पटक पटक  जोर जोर से
भगा दिया
घर में घुसता दुर्भाग्य
और
लगा ताला घर में
भेज दिया मैंने
अपने मुन्ने को स्कूल |

चौरस्ते का टोटका


चौरस्ते पर
भोर भोर
जरीदार ओढ़नी ओढ़
खड़ी थी
वह
एक पुरुष व युवती संग ........
सड़क पर दिखे कभी कभार
ऐसे अद्भुत दृश्य ......
उस महिला ने
शून्य को
कर नमस्कार
रख दिया भूमि पर
रस्सी में बंधे
पांच छ: न जाने क्या टुकड़े
और भी न जाने क्या क्या ....
फिर
जल चढ़ा दिया
शायद
उसने अपने परिवार का 
दुर्भाग्य विदा कर दिया .......
काश
सभी सधवाएं इसी तरह
देश का भ्रष्टचार विदा कर देतीं
तो
आज कोई अभागा न रहता |

शनिवार, 22 मार्च 2014

दौडती हैं महिलाएं


महिलाएं
नौकरी में टिकी रहती हैं
बड़ी कर्मठ होती हैं
इसीलिये
तो
स्कूलों में रखी जाती हैं वे  ..........
सबेरे सबेरे
और
फिर दोपहर में
सडकों पर
बसों में
यूनिफार्म में
दिखती है भावहीन महिलाएं .............
सरकारी स्कूल की
शिक्षा सहायिकाएं
शिक्षिकाएं
बच्चों का भाग्य गढ़ने
के साथ साथ
अपनी आर्थिक आत्मनिर्भरता
और
खुली हवा में सांस लेने के लिए 
दौड़ती हैं
प्रतिदिन महिलाएं |



झाड़ूदार की जय


जय हो तेरी
तूने इतना तो जरूर किया
हम झाड़ूदारों का मान बढ़ाया
अब प्रतिदिन आन्दोलन हम भी करते
घर में
और
रोज मैके भागने की धमकी देने से नहीं डरते  |

रचना में कन्या



कितना  पसीजता
दिल तुम्हारा
किसी के माँ बहन की स्थिति देख
निज रचना में ..........
जय हो !
तेरी करुणा की
नैतिकता की .......
जरा
अपने जीवन में भी उतारते तुम
वह आदर्श
तो
कन्या
गोरैया न कहलाती
महिला आन्दोलन , आरक्षण की
राजनीति न रहती |

राजनीति या मौकापरस्ती


शोक में भी
राजनीति
कर ले प्यारे
ऐसा मौका फिर न मिलेगा ......
जब
सब शोकाकुल हों
तब
तोड़ना आसान है
विरोधी को ..............
संस्कार तो गया
चूल्हे भाड़ में
हम तो
आंख खोले
राजनीति के पालने में |

सुबह की पहचान



मुहल्ले की
अद्भुत औरत थी वह .......
सुबह सुबह
जाड़ा हो या गर्मी
पार्क में
ट्रैक पर मर्दों को
अपनी चाल से टक्कर देती थी ...........
अजूबी सी वह औरत
मित्रहीन थी
पर
शायद खुश भी थी .............
मुहल्ले के किसी कामवाली के
अख़बार में
उसके रुदन की
चर्चा न थी ...............
वह
अनूठी महिला
सुबह की
पहचान पत्र थी |

जी लें हम


आगे न बढ़ पाते जब पांव
तब मुड़ मुड़ ढूंढें  हम
अपने भूले बिसरे जिए चित्र ........
कितना
ऐंठ कर निकलता मकान से
इक मुस्काता इंसान ............
नहीं सुरक्षित है आज उसका बचपन किसी बच्चे में
जीवन में चढ़ गया वह इतनी ऊँचाई
इतना ऊँचा  सपना न देखे इस  भौतिक युग में कोई .....
क्यों लौटें हम .... ख्यालों के पल में
क्यों न आगे ही बढ़  लें अब हम भले ही धीरे धीरे
और जी लें अपनी  मुट्ठी के पल |

मित्र रात्रि


रात्रि !
तू महकाए
कक्ष मेरा
और
बुझाये   
मेरी जठराग्नि .......
खुश होऊं मैं
इंतजार करूं मैं तेरा
ओ रात्रि !
तू ही तो जन्माती आशा का सूरज
नित मेरे मन में ...........
सदा चाँद से
प्रकाश ले
प्रज्ज्वलित करूं मैं
अपने ज्ञान का दिया
और
सोऊं मैं
हो निश्चिन्त | 

मंगलवार, 18 मार्च 2014

घर साफ करूं मैं



झाड़ू का मशीनीकरण हो रहा है
शायद
इसीलिये
अब स्कूटी पे सवार झाड़ूदार नहीं दिखते
सड़क पे ..................
सब अपनी झाड़ू से
खुद ही सफाई करने में
लगे है
अपने घर की
क्या पता
कौन बड़ा आदमी आ जाए
घर में
घर की गन्दगी देख
हमारे बारे में
छाप दे
अख़बार में लोग ...........
रात को झाड़ती नहीं मैं घर
क्या पता लक्ष्मी चली जाये कब
दिन में ही सदा झाडूं
पड़ोसी सड़क पर मेरे फेंके कचड़े बड़े ध्यान से निहारे .........
मैं क्रोध से मन ही मन फुफकारूं.....
अबे !
कचरा चुननेवाले
जो मन भाए उठा ले न
मैंने तो फेंक ही दिया सड़क पे .........
मशीनी झाड़ू बड़ा महंगा है
खरीदना मुश्किल है |





सुन पंछी




ओ रे !
पंछी रे !
तू कितना मनमोहक है ..........
तेरी उड़ान
मुझमें
नभ में उड़ने की प्रेरणा दे 
तू ने ये उड़ान कहां से सीखी ......
इतना सुंदर
रंग परों का कहां से पाया ......
तू
किस स्कूल में पढ़ता  .......
सामने स्कूल का होमवर्क फैला
मैं सोंच रहा .......
क्या तूने अपना होमवर्क पूरा कर लिया ........
इतनी सुबह 
अपने घर से बाहर 
तू 
कैसे निकल पड़ा |

इक शाम छत पर



यारों !
इक शाम की मैं बात बताउं
अपने घर की छत पर मैं खड़ी थी
और 
उड़ते बादलों संग उड़ रही थी
चिड़ियों संग चहक रही थी
तभी
आफिस से जल्दी लौट आई
बिटिया मेरी
देख मुझे छत पे
किचकिचायी ..........
तुम भी न मम
छत पर क्यों घूमती हो
भला अकेले
छेड़ते  हैं
सहकर्मी मेरे
लगता है
तेरी मम छत पर दिन भर रहती है
पड़ोसी को लाईन मारती है ....................
अच्छा है
तुम
कुछ महीने को
गाँव चले जाओ
अपनी सास की सेवा कर आओ ......
डरी सहमी मैं
बिटिया का मातृत्व देख रही थी
मन ही मन
दहल रही थी
और
गांव का विकृत रूप
मेरी आँखों में
तैर रहा था |





फेसबुक अकाउंट



एक दिन
भोर भोर
उठ गयी
दिन चढ़े तक सोनेवाली
बिटिया मेरी .........
उसे प्रसन्न देख
कहा मैंने ..............
सुन मेरी बिटिया रानी
तू है बड़ी सयानी
खींच दे
मेरा एक चित्र
फेसबुक में खोलूंगी
मैं भी
अपना एक अकाउंट .........
सदा डांटनेवाली माँ से
अपनी प्रशंसा सुन
बिटिया मेरी फूली न समाई
और मेरे हाथ से कैमरा ले
चटपट उतारी उसने मेरी एक तस्वीर ........
कम्प्यूटर के स्क्रीन पर जब मैंने देखी अपनी अद्भुत तस्वीर
तब जोर से चिल्लाई मैं ..................
ये कैसी तस्वीर है तूने उतारी
इसे देख कोई न बनेगा मेरा मित्र ...........
ओफ्फोह ममा !
तुम जैसी हो वैसी ही न दिखोगी
अब बुढ़ापे में मित्रता करोगी
राम राम भजो
घर में खा पी कर मस्त रहो ...........
और
बिटिया मेरी चली गयी
स्कूटी से लॉन्ग ड्राइव .................
घर बैठी मैं सोंचूं
हे भगवन !
तूने मुझे बिटिया दी
या
मेरी अम्मा दी |






बेटी को जीने दें




बेटा
बेटा कह कर
बेटी के अस्तित्व को
मिटने न दें हम ............
बेहतर है
बेटी को
उसका हक दे दें .......
और
उसे अब
जीने दें हम |


मेरा पोस्टकार्ड


मेरे प्यारे !
हैप्पी न्यू ईयर 2014 के पोस्टकार्ड !
तुम चले थे
मध्य प्रदेश से
अट्ठाईस दिसम्बर को
अब तक न पहुंचे
ओडिसा
मैं सोंचती हूं
राह में तुम ठीकठाक होगे
मैं
इंतजार कर रही हूं
अब भी तुम्हारा |



मान न पाए



काम करे
अपनी सन्तान सम्हाले
मर्द से टक्कर ले
आफिस में
सड़क पर
घर की मुखिया
अकेली महिला
पर
समाज में
मर्द सा मान न पाए |


तेरा दृष्टि दोष है


अपने जीवन की
तीसरी प्यारी स्त्री लिंग
बिटिया
को दान कर
पूण्य कमा
गंगा नहाने वाले पुरुष को
तूने
न पहचाना अब तक
तो
ये तेरा
दृष्टि दोष है
सुन ले
मेरी प्यारी बिटिया |

मस्ती है जरूरी



खीझ लगे
नैतिकता का पाठ पढ़ाते पढ़ाते
नैतिकता
जब
जीवन में भी ढलने लगे
और
नैतिकता का दंड ले
हम ..........................
आतंक फैलाएं
अरे यारों !
कभी तो मस्ती  में
जी लें हम

सहज हो लें हम |

मनहूस का द्वार

सुबह सुबह
आवाजें आने लगीं
हर घर के सामने से
शनिवार था
दुर्भाग्यशालिनियां बेच रही थीं
अपनी आशीषें
बंट गयीं थीं सामूहिक आवाजें
आज के दिन
काफी बिकती थीं आशीषें
सौभाग्यशालियों में
उन्हें
जल्दी से जल्दी
बहुत से द्वार पर पहुंचना था
मन्दिर में भी तो बैठना था न
मुझ
नसुड्धे के द्वार
कोई न हांक लगाता था
शायद
उनकी नजर में
मैं मनहूस थी
उनकी आशीषों की खरीददार न थी |



सुगन्धि समेटूं


प्रीत बिन
न होय भय
हर पल समेटूं
प्रीत के पल
उन्मुक्तता की सुगन्धि
खोने का भय
हर पल रहे चिर संचित प्रीत
मैं न मानूं
तेरा कथन .........
भय बिन न होय प्रीत |