देश के शहरों
की
आधी आबादी
बैठी है घरों
में आज
सुरक्षित
क्यों
कुंठित कर रहे
उनकी प्रतिभा
व श्रम
सोंच- विचार का
समय है
देश
लंगड़ाते चल रहा
हम वीर रस गुनगुना रहे
हम किधर जा
रहे
कैसे विकास
हो हमारा
सोंचिये जरा !
मकान तो आश्रय स्थल है
थके व्यक्ति का
बच्चों का
क्या बनाया है
निज मकान को
आज हमने
हम सुख
खरीदते
पास
की झोपड़ी पट्टी से
आज सोंचूं
मैं
काश
हम सकून खरीद पाते
अपने दिल का |
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