शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

छोटी कवितायेँ - 4


 कली की टूटन


मात्र एक पंक्ति गीत की
मैके आई
एक नवविवाहिता
बारम्बार गाती है
' आमि त परदेशी गो '
सुन चटक जाता है
शीशा मन का
कौंधता है प्रश्न
दिमाग में
बेटा स्वदेशी और बेटी परदेशी !
ऐसा क्यों ?




लड़की

ओ री !
होश सम्हालते ही
कैसे माना तूने
निज को परदेशी ?
तू भी उतनी स्वदेशी
जितना तेरा सहोदर
जब चाहे जहां घोंसला बना
उड़ ले अपनी उड़ान
भर ले ताकत पख में तू
न मनमार
मारेगा बहेलिया तो भी
खुश रह तू मरेगी
स्वदेश में |

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