शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

साथी मेरा


धीरे धीरे !
बन गया है
वजूद मेरा
सीख लिया है गुर
जीने का
मेरा साथी ट्रांजिस्टर
सदा मेरे साथ रहता 
बोलता जाता
मन बहलाता मेरा
कभी न थकता कभी न रुकता
जब छत पे बैठूं
तारे भी आ जाते
बातें सुनते
ट्रांजिस्टर की
सदा की तरह
फौलाद बन मुस्काऊंगी मैं
अंतिम पल तक
अपनों के हित
जीने की कला
लो अब मैंने है अपना ली |

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