धीरे
धीरे !
बन गया है
वजूद मेरा
सीख लिया है
गुर
जीने का
मेरा साथी
ट्रांजिस्टर
सदा मेरे साथ
रहता
बोलता जाता
मन बहलाता
मेरा
कभी न थकता
कभी न रुकता
जब छत पे
बैठूं
तारे भी आ
जाते
बातें सुनते
ट्रांजिस्टर
की
सदा की तरह
फौलाद
बन मुस्काऊंगी मैं
अंतिम पल तक
अपनों के हित
जीने की कला
लो
अब मैंने है अपना ली |
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