महिलाएं
काम के बोझ से
ज्यों ज्यों लदती गयीं
त्यों त्यों
जीवन का स्तर उनका उठता गया
वे असहिष्णु
होती गयीं
कटती
गयीं अपनों से |
ये कैसी चाहत
वे रिश्ते
सुख पहुंचा सकते थे जो
असह्य
लगने लगे
अपने खोने लगे |
मन पर चलने की प्रवृति
अनजाने में
हम बोने लगे
औलादों में
जब चाहे नौकरी छोड़ें
जब चाहे जीवन साथी |
कहीं न कहीं कुछ तो अभाव है
हर महिला में
जो करती राजनीति घर में
तिस पर भी
आखिर क्यों रह जाती वो अकेले
जीवन के किसी मोड़ पर
ठगी जाती वो
सड़क पर |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें