सास को लगाना पड़ जाय फांसी
ऐसे पति ,पुत्र , बहू
किस काम के
किस काम के
घर में बैठी रहे
बिन ब्याही कमाऊ बेटी
बिन ब्याही कमाऊ बेटी
लानत है
रिश्तों को |
क्यों न रहें हम अकेले
अलग घर में
खुश रहें
बांटे आपसी सुख दुख
हंसें बोलें
दूरी बढ़ाये मिठास
अब न रही
सहिष्णुता
पुरानी
थक कर सोते
हम
निज घर में |
अखबार की हर
खबर दिल को छूए
लगे
कहीं कोई अपना रोये
काश हम पत्थर
बनते
मुंह
ढांप के सोते
सबेरे कहते
...हाय फुर्सत ही कहाँ मिली अखबार पढ़ने की !
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