सोमवार, 10 सितंबर 2012

तांका - 7


कितना मांजी
चरित्र बर्तन को 
दाग गया 
अब कौन साबुन लगे
बोल बंधू मेरे तू !

चमकाया था 
घर का फर्श मैंने
छाप पड़ी
पैरों की तेरे कहीं
इतनी गन्दगी थी !

खदबदाती
उफनती भावना
बह निकली
ताजी कविता बेची !
मुआ पेट भरा |

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