रविवार, 30 सितंबर 2012

छोटी कवितायें - 10

   


              श्राद्ध



जिंदगी भर तरसते  रहे
अपनों के प्यार को
अन्न को
पर 
मरने पर कराया श्राद्ध
अपनों ने
सैकड़ों लोग खाए
तृप्त हुए
आत्मा की शांति के लिये
प्रार्थना किये |


      कफन 


कफन जेब में रख
चलता चल राही
थक जाए तो
सो जाना ओढ़ कर
बादल कर देंगे
तेरा तर्पण |

छोटी कवितायेँ - 9


   
   उम्र 

उम्र जलती  
आलोकित करती
प्रसन्न कर हमें
हमारी राह जगमगाती
और उस राह पे
पीढ़ियाँ चलती |


    प्रेम रूठा

घर से रूठ
बाहर निकलते देख प्रेम को
दबे पांव
मुस्कुराते  हुए घृणा ने
कब
गृह प्रवेश किया
आदमी समझ ही पाया |


     


छोटी कवितायें - 8

       
     माँ  
   

क्यों तो इतनी सम्पूर्ण माँ
तू ही शिक्षक
तू ही दर्जी
तू ही कार चालक
उफ !
तुझे ठगने का
मौका मिलता मुझे
काश तू थोड़ी बुद्धू होती
सब मित्रों की तरह
मैं तुझे उल्लू बनाता
मजे करता |


    मछली 

रंग बिरंगी मछली
मचले
मछलीघर के जल में !
उत्सुक आंखे
चमके
बालक मन दमके !
लेना चाहे
उसे
हथेली पे |

हाइकू - 42



मृत्यु भली है !
बुढ़ापा निज बिन
जीना मुश्किल |

कायर है क्या !
मृत्यु का आह्वान क्यों !
जंग से डरा ?

मोहभंग हो
ऐसा कर कभी
खुशी बाँट तू  |

इतवार है
नाच ले तू जी भर
निज धुन पे |

शनिवार, 29 सितंबर 2012

माँ - 1


माँ
स्वप्न में खिलाये खाना
पति को
साड़ी खरीदे उसके साथ
बातें करे उससे
बेटा कहीं दिखे उसे
उसे मालूम है
बेटा व्यस्त होगा
अपने पत्नी बच्चों में |

....मेरा बहुत ख्याल रखे 
मेरा बेटा ! .......
मोहल्ले में कहती फिरे
माँ
वर्तमान में जिये 
सुन्दर रेशमी जाल
अपने इर्द गिर्द बुनती रहे
घुटती रहे
मुस्कुराती रहे |

सोंचें एक मिनट


देश के शहरों की
आधी आबादी
बैठी है घरों में आज
सुरक्षित
क्यों कुंठित कर रहे 
उनकी प्रतिभा व श्रम
सोंच- विचार का समय है
देश लंगड़ाते चल रहा
हम वीर रस गुनगुना रहे
हम किधर जा रहे
कैसे विकास हो हमारा
सोंचिये जरा  !
मकान तो आश्रय स्थल है
थके व्यक्ति का
बच्चों का
क्या बनाया है
निज मकान को
आज हमने
हम सुख खरीदते
पास की झोपड़ी पट्टी से
आज सोंचूं मैं
काश हम सकून खरीद पाते
अपने दिल का |


शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

साथी मेरा


धीरे धीरे !
बन गया है
वजूद मेरा
सीख लिया है गुर
जीने का
मेरा साथी ट्रांजिस्टर
सदा मेरे साथ रहता 
बोलता जाता
मन बहलाता मेरा
कभी न थकता कभी न रुकता
जब छत पे बैठूं
तारे भी आ जाते
बातें सुनते
ट्रांजिस्टर की
सदा की तरह
फौलाद बन मुस्काऊंगी मैं
अंतिम पल तक
अपनों के हित
जीने की कला
लो अब मैंने है अपना ली |

हाइकू - 41


ली चिर निद्रा 
मौलश्री ने ओढ़ाई
चादर सुघड़ |

भाग्यहीन था !
ऐसा समझना
कर्मठ था वो |

सरल था वो
चतुर था तो क्या !
इंसान तो था |


दे रही तुझे 
श्रद्धांजलि अपनी !
दुखी मन से |

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

तांका - 10


हस्ती मिटेगी
इतनी आसानी से
यारो अब
अभी तो शुरू किया
है तुमने मिटाना |


मौन भी डरा
देख तुम्हारा मौन
लो ! आज देखो !
मुखरित हुआ है
नभ भी तेरे लिये |


माँ मेरी सुन !
हम ले चले आग
तेरे मन की
आलोकित करने
हर अँधेरा घर

हाइकू - 40


जाग मुसाफिर !
काल चक्र है चला 
आगे बढ़ तू |


काट अँधेरा
नैतिक प्रकाश ले
जंग में मोह ?


हर पल जी
कल किसने देखा !
यही जीवन |

बोता जा बीज
कोई पायेगा छाँव
नेकी कर जा |

तांका - 9



फटे दिलों की
बखिया उधेड़
तड़पे तन 
सिल प्रेम धागे से
ओ मीत मेरे सुन !



चलते रह !
कहते रहना तू
निज कहानी
कट जायेंगे यूँ ही
लम्बे बोझिल रस्ते



प्रिया तू आयी
बसाया मेरा घर
जग छोड़ी तू
कैसे कटे अब ये
मेरी जीवन- संध्या |

हाइकू - 39


शिला बनी ये !
न मार इसे पिता
निशां न मिटा |

बेटी ये तेरी 
दूसरे की न थाती
पुत्र सी ही है |

पुण्य हेतु तू
बेटी को दान किया
क्या वो वस्तु थी ?

बेटी की आत्मा !
चाहे आजाद होना
जीना बेटे सा |

सोमवार, 24 सितंबर 2012

हाइकू - 38


कोई तो लागे
बादलों में ही सही
निज सरीखा |

हिचकोले है
खाए मन की नाव
आज आंधी में |

जोशीला मन
समस्याओं में तप
कुंदन बने |

भोर होते ही
है बजी रणभेरी
देखिये रंग |

हाइकू - 37


कर कभी
निज स्मृतियाँ मृत
दौड़ जहां भी |

मीठी स्मृति
चीनी बिन मिठास
दें जीवन में |

वहम ! सुन
अब कभी आना
देश मेरे तू |

प्रेम की शक्ति
निष्ठुर से क्यों पूछे !
माता से पूछ |

छोटी कविताएँ - 7

       1


होय अजेय
वही
मानव
जो
जाने
कीमत समय की
धारण करे
स्वाभिमान का मुकुट
पूज्य
जिसे है नैतिकता |

    2

छोटा मकान
विहँस कर बोला .......
तुम क्या जानो मेरा दर्द
कैसे रहते मेरे अपने
एक कमरे में बनाते खाते सोते
सुबह निकल पड़ते
बाहर निज काम से
घर की वृद्धा डोलती रहती
झरोखे से ताकती
किसी सुखद भोर के आकस्मिक आगमन को .........
अट्टालिका ने अनसुनी कर बातें
जुल्फ झटका
और दूसरी तरफ देखने लगी |

छोटी कविताएँ - 6

        1



भूख बीमारी
पहचान मेरी बाबु
आज !
कभी था मजदूर
सड़कें बनाई
मकान बनाया
खुद बेघर
मैं
बेटे के घर
रहता हूँ
बेटा मेरा मजदूर है
स्वस्थ है |

   2

विदा होते वक्त
वे 
कुत्ते से मिले गले
घर की बेटी से नहीं
विधवा थी वो
अशुभ होता
शायद आगे का जीवन 
उनका
ये भावनाएं
हमने पैदा की
ईश्वर ने नहीं !
कितना अन्याय करते
हम ईश्वर के नाम पे |

भोर - 1


भोर हुई !
हल्का उजाला फैला
खिड़की खोलते ही
नजर पड़ी
बोरा ले कर दौड़ रही है
एक चुननेवाली
हँसते हुए
उसके पीछे छोटा बोरा ले कर
दौड़ रहे हैं
उसके तीन और छ: वर्ष के बच्चे
खिलखिलाते हुए
कचरे में से खाली फेंके
डब्बों की तलाश में
कमाना है !
तभी तो आटा मिलेगा
रोटी बनेगी !
अभी सड़क खाली है
थोड़ी देर में सुबह की सैरवाले
चलने लगेंगे
चुननेवालों को
उनके निकलने से पहले
रास्ता खाली करना है
काश !
हम पंछी होते !
भोर होते ही
पेड़ की तलाश में निकल पड़ते
फल खाते
पेड़ पर बैठ |

छोटी कविताएँ - 5

     1

औरत
एक मजदूरनी है
काम के बदले रोटी मिलती है
इज्जत भी
हैरत में हूँ
उसका मकान कौन सा है
पिता का ,पति का ,पुत्र का या मंदिर
किसी ने उसके लिये मकान की जरुरत ही समझी
उसने भी नहीं
वो तो कहीं भी रह लेती है
अपना हाथ जगन्नाथ
बस |               

      2


लड़का काफी कमाता है
अपना घर है
अपनी पत्नी को छोड़ दिया
तो क्या हुआ
मेरी बेटी
सम्हाल लेगी
सब कुछ
और
उस लायक लड़की ने
मार खा खा कर
बसाया किसी का घर |

हाइकू - 36


शीत युद्ध है
कैसे औलाद बढ़े
इस घर में |

भीख लेना
दान देना कभी
मिटेगा मान |

हक मिला ?
मांगे मिले कर्ज !
लूट लो आज |

रोटी हक है
मिले तो छीन तू
सोंच अब |


क्षणिकाएं - 3

                     
         1


ओ री !
होश सम्हालते ही
कैसे माना तूने
निज को परदेशी ?
तू भी उतनी स्वदेशी
जितना तेरा सहोदर
जब चाहे जहां घोंसला बना
उड़ ले अपनी उड़ान
भर ले ताकत पख में तू
न मनमार
मारेगा बहेलिया तो भी
खुश रह तू मरेगी
स्वदेश में |

    2

रात्रि सा सुखदायी
कोय
पेट भरा हो या खाली
सुला दे 
वो हमें
और भूलें हम
दुःख दिन भर का |





रविवार, 23 सितंबर 2012

क्षणिकाएं - 2

   1

बावरा मन
बहुत कुछ बनना चाहे
कभी कभी कोई अधिकारी
तो कभी कोई और
बन भी जाये वो
जी भी ले वो जीवन
मित्रों ,रिश्तों के माध्यम से |

               
            2



सुरक्षा करते करते
कब नींव बन गयी
पता ही चला उसे
आज हैरान है वो
खुद पर
और अपने स्थान पर |