मुर्ख मित्र
पर दया
कष्ट देती है
और अपने
मुर्ख हों
तो कष्ट
द्विगुणित हो जाता है
भोग विलास की
आकांक्षा
मुर्खता में कोढ़ का काम करने लगती है
जिस दिन
विस्मृत हुआ यह मूल मन्त्र
उस दिन खोएगा
तू खुद को
सुन
रे !
मेरे
साथी !
ओ
मेरे मन !
मित्र तो हैं
जरूरी
याद रख
कर्म और
ज्ञान सा न मित्र कोई
कभी न अकेला
छोड़े हमें
हमारे शरीर
त्याग के बाद भी
हमारी सुरभि
फैलाये
जनमन
में |
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