बुधवार, 11 दिसंबर 2013

मित्र तो है जरूरी

मुर्ख मित्र पर दया
कष्ट देती है
और अपने मुर्ख हों
तो कष्ट द्विगुणित हो जाता है
भोग विलास की आकांक्षा
मुर्खता  में कोढ़ का काम करने लगती है
जिस दिन विस्मृत हुआ यह मूल मन्त्र
उस दिन खोएगा तू खुद को
सुन रे !
मेरे साथी !
ओ मेरे मन !
मित्र तो हैं जरूरी
याद रख
कर्म और ज्ञान सा न मित्र कोई
कभी न अकेला छोड़े हमें
हमारे शरीर त्याग के बाद भी
हमारी सुरभि फैलाये
जनमन में |

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