राजनीति का
खेल निराला
वो न सगी किसी
की
जो सुधारने
चला
वो सुधर गया
झाड़ू दे दे
हारा
कचड़ा तो
सामने
से जितना हटता गया
पीछे उतना
जमता गया
झाड़ू
बेचनेवाला आज खुश है
आज खड़ा हैरान
है जी
आखिर
किस क्षण पकड़ी
उसने झाड़ू हाथ
में
चला था करने
सफाई
अपने घर की
पिछला जीवन ही
भला था
चार बातें सुन
टी ० वी ०
देखता था
आराम से सोफे
पर पसर कर
समन्दर किनारे
आज बैठा मन
आज है
विचारमग्न |
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