बुधवार, 11 दिसंबर 2013

जीत की मिठास

न हंस पाता है
न रो पाता है
आज वह
ये अलग बात है
गर रोता भी तो
खुशी के ही आंसू  निकलते उसकी आँखों से  ......
मन जल से निकली मछली सा
छटपटाता
तिलमिलाता सा रह जाता है
जब बरसों नचाने के बाद
मिलती है उसे
उसकी  अधिकृत वस्तु .......
आंखे तो मौन रहती हैं
पर मुख से बरबस निकल पड़ता है
चलो आखिर सत्य और धैर्य की जीत हुयी
लेकिन अंतर्मन से एक चीत्कार उठती है
I have won the game ….
लेकिन मन धीरे से फुसफुसाता है
यह तो विराम नहीं
रास्ता तो आगे की ओर जा रहा है
और तुझे चलते रहना है |



    


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