शनिवार, 21 दिसंबर 2013

परिश्रमी बनें

स्त्री और श्रमिक
सदा से रहे हैं दमित
विद्रोह दमित का
जला देगा समाज को एक दिन
क्यों न हम रखे ख्याल उनका
मन जीतें उनका
कम से कम अपने आसपास का
मकान शान नहीं सकून है
बड़े मकान में पलता है
घरेलू कर्मचारियों का आक्रोश
आज व्यापारीवर्ग भी व्यापार से दूर रहना चाहें
पढ़ लिख नौकरी करना चाहें
किसान असंतुष्ट गाँव में
चकाचौंध शहर की ललचाये भूखे को
लड़की पढ़ने बाहर निकले
तो ब्लात्कृत हो
गरीब स्त्री
डाईन या बिकाऊ  कहलाये
दूर की समस्या दूर है
बेहतर है
परिश्रमी बनें हम
और अपना घर साफ करें
कम से कम
घर में न राजनीति करें |

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