मन तो हवा है
किसीके बांधे
न बंधा है
जोगी हो या
संसारी
कर्तव्य की
बांसुरी में
हवा फूंक
जिसने न साधा
सुर ताल जीवन
का भोर भोर
वो क्या कभी
मधुर लगा है
फुर्सत के
क्षणों में
साधते हम पलों
के तार
कभी जोड़ते ,
कभी बदलते टूटे तारों को
छेड़ते मधुर
तान
आंखो में मधुर
बचपन का बिम्ब लिए
पहचान बनते
भोर की
अविस्मर्णीय
चरित्र की |
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