मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

मैं तो अंगद का पांव हूँ

स्थिरता हो पांव में
जमे रहे वजूद अपना
जीत की चाह हो
तो काट ही डालेगा
उंगली का सुदर्शन चक्र
हर गुनाह को
माना कि राजनीति छल है
हम वंशज है
महाभारत के देश के
पाप का घड़ा तो रिसेगा ही
और तब
धरा काली हो जायेगी
क्या उगाओगे फिर तुम
क्या खाओगे
कोई न कोई तो रहेगा ही
विक्रमादित्य के सिंहासन पर वही बैठेगा
राज वही करेगा
आस रहेगी जीते जी
तुम क्या दिखाओगे  स्वप्न
हम खुद देखेंगे
अपना स्वप्न
और साकार भी करेंगे खुद ही
हम खुद ही निज भाग्य विधाता
तुम्हारी तरह ही हैं हम
धनी न सही
नैतिकता की पुस्तक हाथ में धर
हम चलते रहे
जब जब नैतिकता ह्रास हुआ
हम तो आम जनता हैं
बस आम ही रहे
अंगद का पांव बने रहे
और मुस्कुराते रहे
दुश्मन को तड़पाते रहे |





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