स्थिरता हो
पांव में
जमे रहे वजूद
अपना
जीत की चाह
हो
तो
काट ही डालेगा
उंगली का
सुदर्शन चक्र
हर गुनाह को
माना कि
राजनीति छल है
हम वंशज है
महाभारत के
देश के
पाप
का घड़ा तो रिसेगा ही
और तब
धरा काली हो
जायेगी
क्या उगाओगे
फिर तुम
क्या खाओगे
कोई न कोई तो
रहेगा ही
विक्रमादित्य
के सिंहासन पर वही बैठेगा
राज वही करेगा
आस रहेगी जीते
जी
तुम क्या
दिखाओगे स्वप्न
हम खुद
देखेंगे
अपना स्वप्न
और साकार भी
करेंगे खुद ही
हम खुद ही निज
भाग्य विधाता
तुम्हारी तरह
ही हैं हम
धनी न सही
नैतिकता की
पुस्तक हाथ में धर
हम चलते रहे
जब जब नैतिकता
ह्रास हुआ
हम तो आम जनता
हैं
बस आम ही रहे
अंगद का पांव
बने रहे
और मुस्कुराते
रहे
दुश्मन को
तड़पाते रहे |
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