बुधवार, 4 दिसंबर 2013

जाड़े की धूप में बतियाती हैं हम

कितना मजा मिलता है
जब हम घर बैठ कर
बस और सड़क की धक्के खाती
ऑफिस खट कर लौटती औरतों को
चरित्रहीन कह कर उसका मान मर्दन करते हैं
आखिर उसका आदमी कमाऊ हैं
क्यों जाती है वह सड़क पे
और आदमी निकम्मा है तो
ताने देने में और मजा आता है ....
देख न कैसे बन ठन कर निकलती है
जरूर चक्कर होगा कोई .....
बिनब्याही निकलती है सड़क पर
तो बाप भाई के नाम पर कोसते हैं हम
मर्दों के दोष निकाल नहीं सकते
डर लगता है उनसे
कामकाजी घर बाहर से थकी हारी 
न सुहाती हमें
क्यों कि पैसे कमाती है वह .....
अपने बाप भाई को भी तो पैसे भेज देती होगी वो ....
जाड़े की धूप में
कभी किसी के छत पर तो किसी के छत पर
बतियाना आखिर कितना सुखद रहता है
और मस्त रहता है मुहल्ले का रिपोर्ट लेना |

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