कहते हैं
स्त्री घर की
धुरी होती है
माँ बहन बेटी
हो या पत्नी
दादी हो या
नानी
मैं कहूं
पुरुष होता
है धुरी सदा
घर का
उसके भौं
संकुचन पर
मुस्कान पर
न्योच्छावर
है हर महिला
उसे प्रसन्न
करने हेतु
कट मर जाती
हैं
और इस तरह
सदा शोषित होती रहती हैं
जिसने समझ
लिया
यह नीति घर
के पुरुष की
उसने
सम्मानपूर्ण जीवन जी लिया
पर जब जब
उसने बदला लिया
लक्ष्मी बन
डगमगाया
जगन्नाथ का सिंहासन
भटकते
रहे दर दर
सुख शांति की
तलाश में |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें