हम झूठ बोते
झूठ की रोटी
खा
मित्र बनाते
दिमाग की खाद
दाल
विकसित करते
जीवन का वृक्ष
बड़ी जल्दी
फलता ये वृक्ष
हम ये कैसे
उद्यान लगा रहे हैं
अपनी जीव्ह
संध्या के लिए
आज अंतर्मन
हो निमग्न
जलता है
खोजी मन
तलाशता है अपने निर्दोष बचपन को
जो शायद कहीं
सो गया
झूठ की रजाई
में |
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