शनिवार, 18 जनवरी 2014

शहर में सदाबहार पेड़

शहर में
सदाबहार पेड़ मिलते ही नहीं
कोई महीने की चार तारीख को सूख जाता है
तो कोई बारह तारीख को
इनकम टैक्स भरने के बाद
अफसर भी रुदाली बन जाते हैं
पत्नी के सामने
ठूंठ से पेड़ों के जंगल में
कोई पक्षी आएगा भला कैसे
गीत गायेगा कैसे
तब निस्तब्ध रात्रि में
गाँव की बगिया याद आती है
कालेज याद आता है
जहाँ सपने पलते थे हमारे
हैरान परेशान हो
मैंने
अपने शहर में ही
चार कमरे का मकान बना
बच्चों का पुस्तकालय खोल दिया है
और
खाली पड़े विराट स्थान में
आम और नीम का पेड़ लगा दिया
अब
मेरा घर
किलकता है
मुहल्ले के बच्चों से
गर्मी में
आम ललचाते है ......
गुलजार रहता है
घर मेरा
साल भर
किसी को नीम का पत्ता चाहिए
दवा के लिए
तो किसी को आम का पत्ता चाहिए
पूजा के लिए
छुट्टियों में
अपनों का विश्रामागार है
मेरा घर
ये लो
मैंने तो
अपने घर को ही
सदाबहार बना लिया है |

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