शहर में
सदाबहार पेड़
मिलते ही नहीं
कोई महीने की
चार तारीख को सूख जाता है
तो
कोई बारह तारीख को
इनकम टैक्स
भरने के बाद
अफसर भी
रुदाली बन जाते हैं
पत्नी के
सामने
ठूंठ से पेड़ों
के जंगल में
कोई पक्षी
आएगा भला कैसे
गीत गायेगा
कैसे
तब निस्तब्ध
रात्रि में
गाँव की बगिया
याद आती है
कालेज याद आता
है
जहाँ सपने
पलते थे हमारे
हैरान परेशान
हो
मैंने
अपने शहर में
ही
चार कमरे का
मकान बना
बच्चों का
पुस्तकालय खोल दिया है
और
खाली पड़े
विराट स्थान में
आम और नीम का
पेड़ लगा दिया
अब
मेरा घर
किलकता है
मुहल्ले के
बच्चों से
गर्मी में
आम ललचाते है
......
गुलजार रहता
है
घर मेरा
साल भर
किसी को नीम
का पत्ता चाहिए
दवा के लिए
तो किसी को आम
का पत्ता चाहिए
पूजा के लिए
छुट्टियों में
अपनों का
विश्रामागार है
मेरा घर
ये लो
मैंने तो
अपने घर को ही
सदाबहार बना
लिया है |
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