गाँव क्या
छूटा
रिश्तों की
पहचान छूटी
आपसी प्यार
भूल चले हम
निश्छल ऑंखें
गुम गयीं शहर
की भीड़ में
देखो जी
हम ने तरक्की
कर ली
बिजली से
चकमक आलीशान मकान के सुख में
ऐसा
डूबे
कि
सगों के नाम लेना भूल चले
सम्बन्धी का
प्यार तो
अब
हमें
टाट में पैबंद लगे |
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