परेशान हैं
हम
बच्चे तो
बच्चे हैं
बूढ़े पीछा
छोड़ते नहीं
कब्र में पैर
लटकाए बैठे हैं
नसीहतें देना
छोड़ते नहीं
कुर्सियों पर
बैठे हैं
हमारे लिए
जगंह छोड़ते नहीं
हरि ॐ जपते
नहीं
अपने कमरे
में रहते नहीं
बैठक घर में
आ कर बैठ जाते हैं
हमारे मेहमान
आने पर
जाड़े में
बालकनी में
दिन में धूप सेंकते हैं
और
गर्मी में
रत
को हवा खाते हैं ठंडी
और तो और
अति हो जाती
है
उस समय जब गेट
के सामने
निज मित्र
जुटा कर हंसी ठिठोली करते हैं
अपने घर में
हमारा राज नहीं
आओ
हम
सब मिल कर बहिष्कार करें
अपने अपने घर
के बूढों का
हर अच्छे काम
की शुरुआत
हम
अपने घर से ही
करें |
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