शनिवार, 25 जनवरी 2014

अनास्था का आगमन

घर के सब प्राणी व्यस्त हों
अकेले बैठ
गीता को श्लोक गानेवाला प्राणी
उठते बैठते हरि ॐ
बरबस निकल पड़नेवाले जीव के मुख से
हरि नाम न निकले
मरणासन्न अवस्था में
तब ईश्वर की निरर्थकता पर
विश्वास होने लगता है
बूढ़े दादाजी
पुनर्जन्म में विश्वास खत्म
जीवात्मा के अस्तित्व पर चुप्पी 
दर्शाने लगा था  
हमें
परम शक्ति के प्रति
उनमें पैदा हुयी अनाशक्ति का
ईश्वर के प्रति आस्था
जीवित रखती है
हमें .............
पर
जीवन में वांछित फल न मिलने पर
दादा जी चुप हो गये थे .........
शायद बिस्तर पर पड़े पड़े लेखा जोखा कर रहे थे
अपने कर्मों का
धीरे अपनी वस्तुओं से मोह भंग करते हुए .........

आखिर हृदय गति रुक गयी एक दिन
रोते हुए आये थे
अपने पुत्र को एक जोर की चीख से पुकार कर
चले गए दादा जी
अपनी सारी धन सम्पत्ति यहीं छोड़ कर ...........
शायद कुछ कहना चाहते थे दादाजी ........
पर सुनने को
मौजूद न था पुत्र अस्पताल में
अकेले आये थे
अकेले चले गए दादा जी
हमें कर्म की महत्ता समझा कर |

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