धर्म की
ध्वजा
मेरे हाथों
में पकड़ा कर
तुम राजनीति
नहीं कर सकते
मेरे हाथ में
तो फावड़ा है
मैं मिट्टी
खोदता हूं
फसल उपजता
हूं
अपना पेट
भरने के साथ साथ
तुम्हारा भी
पेट भरता हूं
समय मिलने पर
कुल्हाड़ी उठाता हूं
अपना चूल्हा
जलाने के लिए
लकड़ी काटता
हूं
मैं अज्ञानी
समझूं न
तुम्हारी
बातें
शहरी |
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