अच्छा लगता
है
खुद ही अपने
इर्द गिर्द खींचना
एक गोलाकार
नैतिकता की
रेखा
पर
जब समानता की
ध्वजा लिए
चलना
चाहते हैं
हम
तब बेहतर
होता है चुप चाप चलना
शान शौकत के
कोहरे
को चीरते हुए
दृढ कदमों से आगे बढ़ते रहना
प्रयास के नशे
में डूबे रहना .....
कभी न कभी तो
बराबर होंगे
हम तुम
टकराएगी
तलवारें
और जीतनेवाला
पूछेगा ......
बोल बहादुर !
तेरे साथ कैसा सलूक किया जाय |
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