रविवार, 12 जनवरी 2014

प्रयास का नशा

अच्छा लगता है
खुद ही अपने इर्द गिर्द खींचना
एक गोलाकार
नैतिकता की रेखा
पर
जब समानता की ध्वजा लिए
चलना  चाहते हैं हम
तब बेहतर होता है चुप चाप चलना
शान शौकत के कोहरे 
को चीरते हुए दृढ कदमों से आगे बढ़ते रहना
प्रयास के नशे में डूबे रहना .....
कभी न कभी तो बराबर होंगे
हम तुम
टकराएगी तलवारें
और जीतनेवाला पूछेगा ......
बोल बहादुर !

तेरे साथ  कैसा सलूक किया जाय |

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