साथ
जब छोड़ देते
हैं लोग
तब
उंगली
पकड़ती है हमारी
सदा छाया सी
साथ रहने वाली
आत्म मुग्धता
और
खींचती ले
चलती है हमें आगे
और राह भर
समझाते रहती
है
भला क्यों
दुखी है
दिग्भ्रमित है
तू
इतना खुबसूरत
परोपकारी मन
और
जन्मजात
बुद्धि के रहते
जीने का सहारा
बनी रहती है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें