उठी है
ललकार........
लो अब तो
निकल पड़े हम
सीना चीरने
समय का
जग के लिए
अजूबी
है
हमारी चाल
और हम
अब तो
बांध भी लिया
है
हमने
अपनों की
आशाओं के बीज
जहां भी
गिरेंगे हम
वहीं
उग जाएगा
आशाओं का वन
हरीतिमा छा
जायेगी
और
पक्षीगण
दूर से
आयेंगे
गीत गायेंगे
चहकेंगे |
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