उफ्फ
!
लटकी है
चिपकी है घर
में
जाती नहीं
माता ही मुंह
फेर ले
तो पड़ोसी
तमाशा देखें
चुटकी लें
मंद मंद
मुस्काएं
फुसफुसायें
कान में माता के
क्या लड़की है
ऐसी लड़की देखी
न जग में
बेटोंवाली माँ
दुखी थी
बेटों के दुःख
से
बेटे के सर पर
बैठी थी
बोझ बन कर
उसकी बिटिया .......
हाय !
अब क्या करूं
हैरान थी
माँ
परेशान थी माँ
छाती पर बैठी
थी बेटी
और
मुंग दल रही
थी
गले की फांस
बन गयी थी
बिटिया
जो माँ के
मुंह से
न उगलते बनती
थी
और
न निगलते
.......
हैरान हूँ
क्या नाम दूं
आज
इस माँ को
इस
स्वयंसिद्धा को
स्वार्थसिद्धा
को |
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