प्रतिभा
सदा अकेली
होती है
पहाड़ की चोटी
पर बैठ
हमारा
मार्गदर्शन करती है
ऐसा
भला क्यों ?
इसीलिये शायद
कुचली जाती
हैं प्रतिभाएं
पर भला बांध
पाया है कोई माई का लाल
नदी का जल
वह तो बहेगा
जरूर
भले ही राह
क्यों न बदल जाये
जब गुबार
उठेगा मन में
बांध भी तोड़
डालेगी प्रतिभा
क्यों न मान
करें हम
प्रतिभा का
और
घर में रोपें
उसे
तुलसी के पौधे
सा
हम उसे जल
डालेंगे प्रतिदिन
कल्याण करेगी
वह हमारा |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें