सोमवार, 13 अप्रैल 2015

चेहरे पर गिल्टीधारी कामवाली


13 April 2015
18:14
-इंदु बाला सिंह

औरों की तरह
हमने भी हटा दिया था
उस
सिरदर्द कामवाली को
पर
वह मेहमान की तरह आ धमकती थी
हर मकर संक्रांति में
हर घर की मालकिन के पास
जिनके बर्तन मांजे थे उसने
और
हक से मांगती थी वह
हर घर से
साड़ी , चादर .........
शिकायत करती थी वह उनसे ........
अपने बेटे बहु की
वह रोती थी
अपनी मरी ब्याहता बेटी को याद कर
और
मेरे घर आने पर
मैं कुढ़ती थी ......
हर साल मांगने चली आती है .........
दान करना
न भाया कभी मुझे
पर
आज सुनी ........
' वह गिल्टी से अपनी खूबसूरती बढानेवाली कामवाली मुक्त हो गयी संसार से '
अंदर से भींगा मन
प्रसन्न हुआ ....

' चलो चलती फिरती ही चली गयी | '

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