02 April
2015
06:50
-इंदु बाला
सिंह
अभाव को
जिस पल मन ने
जगंह दी अपने
दिल में
दुखों के
पत्ते गिरने लगे उस गह्वर में ........
अपमान की आंधी
में
न जाने किस पल
आशा का बीज गिरा
और
कर्म की ऊष्मा में अंकुरित हो
कर्म की ऊष्मा में अंकुरित हो
कब पौधा बन गया
पता ही न चला
स्वजनों को ........
अब
प्रतिदिन
कंटीली झाड़ियों की ढेरी लगाती है
बुद्धि
उस पौधे के इर्दगिर्द |
उस पौधे के इर्दगिर्द |
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