गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

मजदूर दिवस और महिला


13 April 2015
12:51

-इंदु बाला सिंह


महिला
होश सम्हालने से ले कर
होश खोने तक
मजदूर है
उसके जीवन का स्तर
उसके श्रम
उसकी काबिलियत पर निर्भर करता है
पर
वह क्या जाने मजदूर दिवस
वह तो
सदा भाग्य व प्रेम के सहारे चलती है 

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

मानें तो देवता नहीं तो पत्थर


29 April 2015
07:10

-इंदु बाला सिंह

पत्थर का उपयोग करते हैं हम
अपना
मकान बनाने में
तरकारी के लिये  मसाला पीसने में
और
कभी कभी तो
हम उसे ' मील का पत्थर '  की तरह उपयोग करते हैं

यह हमारा ही कौशल है
कि
देखते ही देखते हमारे हाथों तराशा गया पत्थर
सज जाता है
किसीके ड्राइंग रूम में
तो किसीके पूजा गृह में |

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

प्राकृतिक आपदा और मानव


25 April 2015
21:02

-इंदु बाला सिंह


प्राकृतिक आपदा
मिटा देती है
हममें पनपे
जाति धर्म , अमीर गरीब का भेद
यह तो
लिंगभेद भी मिटा देती है
बस
यह
हमें महसूस कराती है ........
कि जीना है
तो मानवता याद रखो
वर्ना
मिट जायेगी
एक दिन तुम्हारी पहचान



शहर की आधी आबादी


25 April 2015
20:25

-इंदु बाला सिंह



हैरान हूं
परेशान हूं
शहरों में बसने आयी
आधी आबादी के
बतियाने से |


बुधवार, 22 अप्रैल 2015

आंखें मौन रहीं


23 April 2015
08:39
-इंदु बाला सिंह

तेरी मौत पे
दिल रोया जार जार 
पर 
आंखे सूनी रहीं 
न जाने क्यों 
वे 
मौन रहीं |

समस्या समाधान का आसान तरीका


23 April 2015
08:01
-इंदु बाला सिंह


कर्मचारी गिरा कारखाना में
शायद नौकरी मिल जाये
उसकी सन्तान को
आज कल नौकरी मिलनी कितनी मिश्किल है
किसान लटका पेड़ से
एक नेता के भाषण के वक्त
इस आशा से
कि
उसके परिवार के आभाव का समाधान हो जायेगा
समस्या समाधान का ये आसान तरीका
किस विद्यालय में पढ़ते ये
सोंच में है
आज डूबा मन |

आज तो आमदनी होने वाली है


23 April 2015
06:51

-इंदु बाला सिंह

आग लगी
किसान के पेट में
देखते ही देखते ही देखते जलने लगा
उसका दिमाग .......

मैं दौड़ी
उस आग के पास 
हाथ तापा मैंने
अपनी अकड़ी अंगुली गर्मायी
फिर
टाईप करने लगी रिपोर्ट
आज तो
अच्छी आमदनी होनेवाली है 
मुझे
अखबार से |

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

सोंच में परिवर्तन मांगे शहर


21 April 2015
03:17

-इंदु बाला सिंह


कन्यादान करनेवाले
जरा पुत्रदान कर के तो देख
शायद
संवर जाय
किसी का भाग्य
वैसे
तेरी प्यारी बहु
तेरे घर आने के कुछ  ही महीनों बाद
छीन कर ले ही जाती है तुझसे
तेरा उच्च पदस्थ बेटा
और
तू
बस कसमसाता रह जाता है |
तुझे मालूम है
कि जिस दिन तू उफ्फ करेगा
उसी दिन
खो देगा
तू
अपना बेटा
सुनकर उसकी बातें ........
रखे रहिये
पास अपने 
अपना रुपय्या
खेत खलिहान
और
मकान |
तुझे
भौतिक सुख सुविधा , उच्च स्तरीय विद्यालय दे के 
तेरी सोंच में
परिवर्त्तन मांगे
तुझसे
आज शहर |


रविवार, 19 अप्रैल 2015

परेशान मुन्ना


20 April 2015
07:59


-इन्दू बाला सिंह


चाह मेरी
बन चिरैय्या पंख पसार उड़ जाऊं
फुद्कुं
डाली डाली पे चहकूं
भला न लगे
मुझे
पढ़ना
स्कूल जाना
फीस मांगते वहां टीचर
बच्चे
बढ़िया बढ़िया टिफिन लाते
सबके कपड़े चमकते
बगुले जैसे
मुझसे न हो पाता
होमवर्क स्कूल का .........
भोर भोर
गाल पे हाथ रख
आम के पेड़ तले खड़ा
है मुन्ना सोंच रहा
और
सपने देख रहा |

अवैतनिक मजदूर


15 April 2015
08:54




-इंदु बाला सिंह


इतनी भारी थी मैं
मेरे पिता !
कि
दान कर मुझे
बोझमुक्त हुये तुम .........
मर जाउंगी मैं
पर
पैदा करूंगी बिटिया ........
मैं अभागन
अवैतनिक मजदूर
पैदा करूंगी मुझ सरीखी |

तूने तो ठग लिया


02 January 2015
15:39

-इंदु बाला सिंह



ये कैसा पाठ पढ़ाया
तूने तो ठग लिया मुझे
इमानदारी का पाठ पढ़ा के
आज झूठे को जीतते देख
याद करूं मैं तुझे
ओ मेरे बचपन के साथी पुस्तकें |

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

चलती ट्रेन से कूदते कर्मचारी


18 April 2015
09:43

-इंदु बाला सिंह


स्टेशन आने से पहले ही
धीमी हो जाती थी ट्रेन
और
फटाफट कूदते थे पुरुष
चलती ट्रेन से
इस अजूबे दृश्य का कारण समझाया था मुझे
मेरे मित्रों ने ....
ये लोग रोज शहर से ऐसे ही आते है
और
ऑटो पकड़ कर जाते हैं
अपने कार्यस्थल पर
दिन भर आफिसों में काम कर
लौट जाते हैं
अपने शहर हर शाम ........
और मैंने सोंचा .....
कहां हैं महिला पुरुष की बराबरी पर लाठी भांजनेवाले
कैसे जान पर खेल कर कमाते हैं पुरुष 
आज एक युवक ट्रेन से उतरते समय गिर कर  मुक्त हो गया संसार से
जली ट्रेन की बोगी
तोड़ फोड़ हुयी स्टेशन में
पर
जिसके परिवार का सदस्य चला गया इस जहां से
वह न लौट के आया
हाय !
ये पैसा !
तू कितना नाच नचाता
किसीको हंसाता
तो
किसीको रुलाता |

अभी सलामत हैं हाथ पैर मेरे


18 April 2015
06:36


-इंदु बाला सिंह


बेटे की आँखों से सपने देखता
जीता
मान पाता
बेटे को सुरक्षा देता पिता
जब
अकेला हुआ
तब होश में आया  ........
और
आज भी
तारों भरी रात में
दिखता है उसे
अपना इंजीनियर बेटा
किसी आफिस में काम करते हुये .......
' रामजी की कृपा से
अभी सलामत हैं हाथ पैर मेरे
मैं तो रोज साईकिल चलाता हूं
दूध बांटता हूं '
सोंचते ही
पिता की  आंख मुंद गयी |


गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

माफ़ करनेवाला बड़ा !


17 April 2015
09:04
-इंदु बाला सिंह

कहते हैं
माफ़ करने से
सकून रहता है दिल को
सजा तो दोषी खुद पा लेता है \
आत्मग्लानि से
तो
जेल क्यों बने ?
मनुष्य संत हैं क्या ?
अपराध क्यों बढ़ रहे ?




उम्मीदों का सूरज


17 April 2015
07:10

-इंदु बाला सिंह

ओ मन !
रुकना नहीं
मुड़ना नहीं
अनसुनी कर अतीत की हर पुकार
बस बढ़ता जा
कि
सच तो
बस
आज ही आज है
अंधियारा छुप रहा है
और
दूर
बादलों के पीछे
उम्मीदों का सूरज चमक रहा है
बैठना मत
पत्थर बन जायेगा तू
सोना मत
क्रिया कर्म हो जायेगा तेरा
चमकीली , सपनीली , थकी आँखों की
जीवन ज्योति बुझने न देना |


फलांग गयी वन


16 April 2015
17:12
-इंदु बाला सिंह

जोर की सांस खींची
और
फलांग गयी वन ........
अब भौंचक हो खड़ी हूं
मैं
रेगिस्तान के बालू पर ........
शायद आसपास जलाशय मिले ......
मन तो मानता नहीं
खाली सपने देखा करता है
और
दौड़ाता रहता है |

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

आधी आबादी का युद्ध


15 April 2015
06:40

-इंदु बाला सिंह

पैतृक घर हो
या
स्वसुर गृह हो
छांव व प्यार मोह में डूबी  
आधी आबादी
को
क़ानून से क्या मतलब
वह तो
बस एक छत के नीचे रह
कछान मार
शब्दभेदी बाण चला चला
निपटा लेती
आपस में ही घर के मर्दों की हर समस्या
और
वह
पैतृक सम्पत्तिहीन
आजीवन
सैनिक ही बनी रह
अपनी सरीखी माँ जन्मा जाती है  |

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

चेहरे पर गिल्टीधारी कामवाली


13 April 2015
18:14
-इंदु बाला सिंह

औरों की तरह
हमने भी हटा दिया था
उस
सिरदर्द कामवाली को
पर
वह मेहमान की तरह आ धमकती थी
हर मकर संक्रांति में
हर घर की मालकिन के पास
जिनके बर्तन मांजे थे उसने
और
हक से मांगती थी वह
हर घर से
साड़ी , चादर .........
शिकायत करती थी वह उनसे ........
अपने बेटे बहु की
वह रोती थी
अपनी मरी ब्याहता बेटी को याद कर
और
मेरे घर आने पर
मैं कुढ़ती थी ......
हर साल मांगने चली आती है .........
दान करना
न भाया कभी मुझे
पर
आज सुनी ........
' वह गिल्टी से अपनी खूबसूरती बढानेवाली कामवाली मुक्त हो गयी संसार से '
अंदर से भींगा मन
प्रसन्न हुआ ....

' चलो चलती फिरती ही चली गयी | '

कब मान पायेंगी बेटियां ?


13 April 2015
17:36

-इंदु बाला सिंह


मौसम आये और गये
बेटियां खिलखिलाने की आस लिये मुरझायीं
पर
वे जमीन से जुड़ी रहीं
धरती की कोख में समाती रहीं
कब आजाद होंगी ...........
मान पायेंगी .........
आम घरों में बेटियां
दुखी है 
आज 
जी |

रविवार, 12 अप्रैल 2015

बेटी का अस्तित्व


11 April 2015
07:07

-इंदु बाला सिंह


दान करने के लिये
जन्मानेवाले
बेटी तेरे लिये
सामान है
या
पशु .........
कहीं अपने खेत , मकान को बंटने से बचाने के लिये तो नहीं  दान कर दी
तूने 
अपनी बेटी !
ओ आदमी !
मेरे प्रश्न को अनसुना कर
तेरा
आगे बढ़ जाना 
न जाने क्यों
मुझे
कुछ अजीब सा लगे आज |

नदी उन्मुक्त है


12 April 2015
13:11

-इंदु बाला सिंह

नदी कीउन्मुक्तता से

इर्ष्या करनेवाले

नदी को न पढ़ पाये 

कितना तड़पती वह मिलने को

अपने जन्मदाता से

जब जब सुनती वह

लोकगीतों में

उनके


किस्से | 

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

प्यारी बिटिया


25 March 2015
11:36


-इंदु बाला सिंह


यह

मेरी मजबूरी थी

कि

तेरी  मजबूरी !

न जाने क्या था ......

पर

सदा ही पाया मैंने

तुझे

खड़े  अपने बगल में

मेरे सुख दुःख के पल में

और

एक दिन मन बोला ........

ओ मेरी बिटिया रानी !

जा तू मातृ ऋण से मुक्त हुयी |

बेटी का घर


11 April 2015
07:45


-इंदु बाला सिंह  


वाह दहेज !

आह दहेज़. !

बेटी बनी सीने की बोझ

बेटी का घर बसाने की चाह लिये

मिट गया मैं

ये कैसी अजब गजब तेरी दुनिया

ओ ! भगवन |

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

दहेज देने को प्रेरित मन


09 April 2015
15:32

-इंदु बाला सिंह

हाथ खींच लिये अपने
कहां से जुटे
दहेज के रूपये
अब तो ब्याह की तारीख भी पास आयी
अपमान और तनाव में
पिता कूद गया
छत से
और
मुक्त हो गया
प्रतिदिन की चिंता से ........
पर
न जाने यह कौन सा अहं था
जिसने
उसके मन को
दहेज देने के लिये प्रेरित किया था
उसे
परेशान हूं मैं
आज यह सोंच सोंच |

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

ब्याहता तो प्यारी है


09 April 2015
10:23

-इंदु बाला सिंह


ब्याहता तो प्यारी लगे ससुराल में
और बोझ लगे मैके में
न आना लौट के
कभी अपने बाप के पास
क्यों बनना चाहती है
आज सती तू
मानहानि से बेहतर है मिट जाना
तेरे लिये  |

क्या गजब व्यवहार सिखा रहे हम !


24 March 2015
08:08


-इंदु बाला सिंह


क्या खूब !

संस्कार खोते जा रहे..........

रिश्ते खोते जा रहे .........

ये क्या गजब व्यवहार सिखा रहे आज

अपने बच्चों को 

हम |

कैसे खाऊं रोटी !


24 March 2015
08:08

-इंदु बाला सिंह

दुःख गया दिल भोर भोर

कैसे खाऊं मैं

आज रोटी

देख 

लटके पेड़ से


आंटा का जन्मदाता |

आंधी आयी दौड़ा मुन्ना


08 April 2015
22:17

-इंदु बाला सिंह


हुर्रा !
आंधी आयी
अरे ! पानी भी आया तो क्या हुआ ?
आम गिरेगा पट पट पट .....
दौड़ा मुन्ना भरने झोली
आज मुन्ना खुश है
अच्छा हुआ
आंधी जल्दी आयी
वर्ना अंधेरे में कैसे चुनता वह आम
अब तो कल से बनेगी घर में
आम की मीठी चटनी .......
और मुन्ना
भींग भींग कर चुन रहा है आम
क्योंकि मम्मी जी आज नहीं लौटी है अब तक
आफिस से |


पिता बन गये हम


08 April 2015
12:38
-इंदु बाला सिंह
शुक्रिया
हर मुंह मोड़नेवालेवाले का
आज मर्द बन गये हम
हैरानी तो तब हुई
जब
अपने पिता सरीखे
एक एक सिक्के भी बचाने लगे
और
आज पत्थर बन गये .................
पर
पिता सरीखा मान न पा सके हम |

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

स्त्री नदी है |


07 April 2015
06:48
-इंदु बाला सिंह
सुलझी स्त्री नदी है
घर के प्राणी को तृप्त कर बहती जाती है
नाचती है
गुनगुनाती है
धनार्जन करती है
पर दुखी होने पर वह सूख भी जाती है
और घर का पुरुष
' लक्खी-छड़ा ' नाम से प्रसिद्धि पा
सडकों पर
भटकता रह जाता है |

माँ से डर के घर न जायें तो !


07 April 2015
10:32

-इंदु बाला सिंह


काले कलूटे दुबले पतले
भारी भरकम स्कूल बैग पीठ पर लटकाये
पार्क में घूमते दो बच्चों को देख
चिल्लायी
रूखे बालोंवाली पतली सी कामवाली .....
' तुम दोनों भाई स्कूल नहीं गये ?
आना घर आज
घुसने न दूंगी '
और मैं पहचान गयी उसे...
' यही तो आयी थी हमारे घर काम की तलाश में
दो छोटे छोटे लडकों को चिपकाये
और
मैंने भौं सिकोड़ लिया था
गांव से आई अकेली औरत जात
साथ में नाक बहाते दो बच्चे
न जाने कौन है ये ? '
और 
आज मैं चिंतित हो उठी 
उसे अपने बच्चों को डांटते देख ....
' ये बच्चे माँ से डर के घर न जायें तो ! '




शनिवार, 4 अप्रैल 2015

फेसबुक में सृष्टि


05 April 2015
07:01

-इंदु बाला सिंह


फेसबुक ने
फ़ॉलो आप्शन दे कर पकड़ा दिया हैं
हमारे हाथ में
एक जादुई बटन
बस दबाईये
और देखिये
आदमी की असलियत
सृष्टि
लोगों को जन्मते
मिटते
रोते
हंसते |

शहर में जंगल


05 April 2015
10:22


-इंदु बाला सिंह

आखिर मिटा ही दी हमने
इंसानियत को जानवरों से अलग करने वाली रेखा
और भूल गये हम
अपनों को पहचानना
अब
शक्तिशाली ही शासक है
देखते देखते
शहरों में
असंख्य जंगल बन गये |

सच और झूठ


04 April 2015
20:15


-इंदु बाला सिंह


झूठे को सम्मान पाते देख
गर्मी के मौसम में भी
ठिठुर उठती है 
पल भर को बुद्धि
सच बौखलाने लगता है ........
पर
सड़क पर दौड़ते
किलकते
बच्चे
भुला देते हैं सब कुछ
सच और झूठ दोनों  छुप जाते है डिक्शनरी में
कुछ समय के लिये |

पौधा और इंसान


04 April 2015
20:23


-इंदु बाला सिंह



किसान का दर्द
न महसूसा जिस इंसान ने  
वह
अपने जन्मदाता का दर्द क्या समझेगा
सब्जी बेचती
दूर गांव से आयी औरतों के
अंधियारों को जिसने न महसूसा
वह
अपने घर के उजियारे का क्या मोल आंकेगा ..........
रोते हुये आया था
वह
फटी आँखों से
अपनी आशाओं के मरे पौधे देखता हुआ 
जरूर सो जायेगा
एक दिन |

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

मन बच्चा है !


03 April 2015
08:25

-इंदु बाला सिंह

सुन अपनों के बोल
कुहुस उठता है मन
सोंचुं मैं ............
' मन बच्चा क्यों रह जाता है ?
समय से चाबुक खा के भी
यह
सुधरता क्यों नहीं है ? '

जन्मदाता को मुखाग्नि - क्यों न दे बेटी ?


03 April 2015
14:06
-इंदु बाला सिंह


बीस बरस तक
जिस ब्याहता बेटी के साथ रही
अपने बेटे से लड़कर माँ 
उस माँ कीअंतिम  इच्छा शिरोधार्य कर
बहन ने किया
अपनी माँ का अंतिम संस्कार
पर 
माँ को मुखाग्नि देने के कारण 
उस बेटी को 
मिली   दर्दनाक मौत अपने भाई की कुल्हाड़ी से ............
माना कि
जेल पहुंचा भाई
अखबार की यह खबर पढ़
दुखी मन
आज न जाने क्यों
सोंच रहा ......
क्या अपने माता पिता के
अंतिम संस्कार के हक का बंटवारा
भाई बहन में नहीं हो सकता ?

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

दिन जीने लायक बनता है |


02 March 2015
17:45

-इंदु बाला सिंह


तुम्हारा अस्तित्व स्थिरता देता है मन को
कहीं तो होगे तुम
तुमसे जब बातें करता रहता है मन
तब यूं लगता है 
तुम सुनते होगे मुझे ......................
समाधान मिलेगा मुझे
मेरे प्रश्न का
मेरी समस्याओं का
जिस पल मान लेगा मन तुम्हारी अस्तित्वहीनता
उसी पल वह पत्थर बन जायेगा ...........
आशा के सूरज से ही तो
पिघलती है
दुखों की बर्फ
और 
दिन जीने लायक बनता है |

हम चंदा लेने आये हैं |


02 April 2015
13:42

-इंदु बाला सिंह

विश्वकर्मा पूजा
दुर्गा पूजा
सरस्वती पूजा
छठी माता की पूजा
श्मशानघाट में पूजा
राधे कृष्ण मन्दिर की स्थापना
अनाथालय की सहायता
डाक्टरखाना में चिकित्सारत पेशेंट
और भी अनगिनत कारणों हेतु
जब आ जाते हैं कुछ लोग द्वार पर
हाथ में पकड़ रसीद बही
खटखटा कर गेट या ड्राइंग रूम का दरवाजा 
कहते हैं .....
' हम चंदा लेने आये हैं '
तब
हर बार हाथ जोड़
' सॉरी ' बोल बोल कर
मन भी
निरीह सा हो गया है ........
' आखिर क्यों मांगते हैं ये लोग चंदा ?
खुद ही क्यों नहीं दान करते ये अपनी कमाई ? '
कभी कभी परमशक्ति पर से आस्था
डिग सी जाती है |