20 May
2014
12:56
-इंदु बाला
सिंह
बंजर
हो गयी जमीं ......
अब
ख्वाबों के
बीज पड़ते ही नहीं ......
ये कैसा मौसम
है आया
क्यों चेहरे
स्पंदनहीन से दिखें हमें आज ......
गाल पर हाथ दे
बैठे हैं हम
अब .....
जैसे
आज बीहन के
बीज ही खा चुके हों हम ......
ये कैसी हवा
है
जिसमें जंगल
की खुशबू नहीं |
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