रविवार, 16 जून 2013

समझौते

26.02.2000

अंतर्मन के लम्बे शीतयुद्ध की परिणिति
गिरा देती है मनोबल
डुबो देती है स्व को
और रचना करती है एक मशीनी समाज की
समझौतों को नपुंसकता का नाम देनेवाले
रक्त बहा प्रसन्न होते हैं
गौरव पाते हैं
अभिमन्यु बन जाते हैं
रात्रि के सन्नाटे में गूंजता

पिता का रुदन हमें नहीं भूलना चाहिए |

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