26.02.2000
अंतर्मन
के लम्बे शीतयुद्ध की परिणिति
गिरा देती है
मनोबल
डुबो देती है
स्व को
और रचना करती
है एक मशीनी समाज की
समझौतों को
नपुंसकता का नाम देनेवाले
रक्त बहा
प्रसन्न होते हैं
गौरव पाते हैं
अभिमन्यु बन
जाते हैं
रात्रि के
सन्नाटे में गूंजता
पिता का रुदन
हमें नहीं भूलना चाहिए |
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