रविवार, 16 जून 2013

अद्भुत निर्णय

06.06.00

पता नहीं कैसे
दुस्साहस किया मैंने
इस वन में अकेले चलने का
मणि खोज लाने का
मार्ग की हर लता ,झाड़ झंकाड़ हटाते हुए सोंचती हूँ
बस इसी अवरोध को तो हटाना है
पर हर बार खुद को पुरानी स्थिति में पाती हूँ
पीछे मुड़ कर देखने पर
लौटने का मार्ग तो दीखता है
पर लगता है लौटने में भी तो बाधाएं हैं
इतने समय के श्रम का भला मुझे क्या मूल्य मिलेगा
भगोड़ा सैनिक क्या मैं न कहलाऊँगी |

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