शनिवार, 29 जून 2013

एक दुःख अफसर का



आफिस से दिन भर का थका हारा
मेस से खाना खा कर 
कमरे में लौटते ही गिर जाता था वह बिस्तर पर |
उसकी नींद से मुंदती आँखें बड़े हसरत से देखती थीं
वाशिंग मशीन से धुले कपड़ों के ढेर को
काश रात को परियां आतीं
और उसके कपड़ों को आयरन कर चली जातीं
छुट्टी तो रविवार को भी नहीं थी उसे
कोई न कोई काम ' सर ' का मिल जाता था उसे
उस अफसर का दुख भुक्त भोगी ही जान सकता था |


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें