रविवार, 9 जून 2013

चलूँ रंग देखूं

जो मिला था वही अपना था
अब न जियें वो बिछड़ा पल
बढ़ते चलें  
बस बढ़ते ही चलें |

कितना सकून है चलने में
उन्मुक्त जीवन जीने में
निश्चिन्त हो चलते रहने में
दुनिया के रंग देखने में |

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